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आंगादेव

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आंगादेव पर जड़े है ब्रिटिशयुगीन सिक्के.....! बस्तर के जनजातीय समाज में विभिन्न देवी देवताओं के प्रतीक के रूप में आंगादेव , पाटदेव बनाने की प्रथा है। आंगादेव कटहल की लकड़ी से बनाया जाता है। जिसमें आठ हाथ लंबी दो गोलाकार लकड़ियों पर दोनो सिरों पर चार हाथ लंबी गोलाकार लकड़ी से बांधा जाता है। इन्हे कभी भी सीधे जमीन पर नहीं रखा जाता। इनके रखने का विशेष स्थान और चौकी होती है। ग्रामीण आंगादेव और पाटदेव को जागृत मानते हैं और इन्हे हर संभव खुश रखने का प्रयास करते हैं। किसी गांव या किसी के  घर में आपत्ति आने पर बाकायदा इन्हे आमंत्रित किया जाता है। चार सेवादार इन्हे कंधों पर रख नियत स्थान तक पहुंचाते हैं। आंगादेव का मुख्य पुजारी जो भी निर्णय लेता है या फैसला सुनाता है। वह सर्वमान्य होता है।आंगादेव पर चांदी के नाग, चांदी के आभूषण जड़े होते हैं। पुराने सिक्कों को भी इसमें टांक कर इसे सुन्दर दिखाने का प्रयास किया जाता है। देवी देवताओं को सोने चांदी के आभूषण भेंट करने की पुरानी परंपरा है। अब वनांचल में रहने वाले ग्रामीण इतने सक्षम नहीं रहे कि वे सोने चांदी की श्रृंगार सामग्री भेंट कर सकें, इसलिए वे अप...