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लुप्त होती तुंबा संस्कृति

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लुप्त होती तुंबा संस्कृति......! प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं के कारण जंगल में जीवन जीने में आसानी होती है। बस्तर में यहां के आदिवासियों के जीवन में प्रकृति का सबसे ज्यादा योगदान रहता है। जहां आज हम प्लास्टिक, स्टील एवं अन्य धातुओं से बने रोजमर्रा की वस्तुओं का उपयोग करते है वहीं बस्तर में आज भी आदिवासी प्राकृतिक फलों , पत्तियों एवं मिटटी से बने बर्तनों का ही उपयोग करते है। इन प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं में तुम्बा हर आदिवासी के पास दिखाई पड़ता है। दैनिक उपयोग के लिये तुम्बा बेहद महत्वपूर्ण वस्तु है। बाजार जाते समय हो, या खेत में हर व्यक्ति के बाजु में तुम्बा लटका हुआ रहता है। तुम्बे का प्रयोग पेय पदार्थ रखने के लिये ही किया जाता है। इसमे रखा हुआ पानी या अन्य कोई पेय पदार्थ सल्फी , छिन्दरस , पेज आदि में वातावरण का प्रभाव नहीं पड़ता है। यदि उसमे सुबह ठंडा पानी डाला है तो वह पानी शाम तक वैसे ही ठंडा रहता है। उस पर तापमान का कोई फर्क नहीं पड़ता है और खाने वाले पेय को और भी स्वादिष्ट बना देता है। खासकर सोमरस पाने करने वाले हर आदिवासी का यदि कोई सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी है तो वह है तुंबा। तुंबा में अधिका...