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छिंदरस

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छिंदरस की बहार.......! बूंद-बूंद से घड़ा भरता है यह कहावत बस्तर में बिल्कुल चरितार्थ होते हुये आप देख सकते है। आजकल बस्तर में हर जगह छिंदरस से घड़े भरे हुये दिखाई दे रहे है।हर बार की तरह ठंड का मौसम अपने साथ छिंदरस का उपहार साथ लाया है। बस्तर में छिंद के पेड़ों की भरमार है। इन छिंद पेड़ो से मिलने वाला रस बस्तर के जनजातीय समाज के खान-पान में मुख्य रूप से सम्मिलित है। छिंदरस पीने से कोई खास नशा नही होता है बल्कि उसका हल्का सा सुरूर छाया रहता है। इसका स्वाद भी खट्टा मीठा होता है। छिंदरस निकालने के लिये पेड़ पर चाकू से चीरा लगाया जाता है। उस स्थान से रस टपकने लगता है। वहां पर ग्रामीण एल्युमिनियम या मिट्टी की हंडी टंगा देते है। उस हंडी में बूंद-बूंद कर छिंद का रस भरते जाता है। बूंद-बूंद से घड़ा भरने की यह कहावत यहां पर सही साबित होते हुये देखी जा सकती है। बस्तर में अभी हर जगह छिंदरस की मधुर ब्यार बह रही है। जनजातीय समाजों में छिंद रस निकालने के लिये सिर्फ एक ही व्यक्ति नियत किया जाता है। वह व्यक्ति अपने ईष्ट की पूजा अर्चना करने के बाद ही छिंदरस निकालता है। सीमित मात्रा में छिंदरस पीने से स्...