वेवरी

वेवरी : बेवरी : विवर # Water_hole (pit)_in_the_River जहाँ नदी का बहाव होता है, वहीं के लोग यह जानते हैं कि वेवरी क्या होती है ! प्रकृत पानी को प्रवाह क्षेत्र में ही गड्ढा बनाकर पाना और पीना। यह गड्ढा वेवरी है। लम्बे काल तक जिस नदी में पानी बना रहे और जिसमें बालू का बिछाव हो, वहाँ वेवरी सुगमता से बन जाती है। हथेलियों से रेत हटाई और विवर या छेद तैयार, कुछ ही देर में धूल नीचे जम जाती है और पानी साफ़ हो जाता है। यह कपड़छन की तरह वालुकाछन पानी होता है। इसके अपने गुणधर्म है। नदी में कपड़े आदि धोते और दूसरे काम करते समय प्यास लगने पर पानी वेवरी से ही सुलभ होता और मुंह लगाकर खींचा जाता या फिर करपुट विधि (हाथों को मिलाकर) पिया जाता। एक वेवरी के गन्दी होने, अधिक पानी से बालुका के भर जाने पर दूसरी वेवरी बनाई जाती। शायद कूप खोदने की विधि को मानव ने इसी से सीखा होगा। छोटे छेद में पानी कम होने पर मिट्टी निकलने और गड्ढे के बड़े होने ने कूप खनन करवाया एवं इसको पक्का, मजबूती देने पर विचार किया गया। ऐसे कूप से ही घरगर्त बने जो सिंधु आदि नदीवर्ती घरों में बने मिलते हैं। भविष्य पुराण में इस परम्परा की स्मृति ...