छतोड़ी

छतोड़ी की खोज.....! सावन भादो की बरसात मे सभी जगह रंग बिरंगे लाल काले छाते ओढे ही लोग दिखते है। छतोड़ी पहनकर जाता कोई भी अब दिखता नहीं है। बांस से बनी छतोड़ी बहुत काम की चीज है जब बस्तरिया बरसात के दिनो ंमें खेत जाता है या मछली पकड़ने तालाब जाता है तो वह छतोड़ी पहनकर ही जाता है। अब तो बस्तरिया और बस्तरिन दोनो के हाथो में सिर्फ काला छाता ही दिखता है भले ही पानी गिरे या तेज धुप हो। ऐसी कोई बस्तरिन नहीं जिसके हाथो में काला छाता ना हो। छतोड़ी तो अब बीते दिनों की बात हो गई है। छतोड़ी थोड़ी बड़ी साईज की गोलाकार होती है। वहीं इसका एक रूप ढूटी भी होती है यह अपेक्षाकृत थोड़ी छोटी होती है। इन्हे बनाने के लिये लचीले बांस की खपचियों को उड़नतश्तरी के आकार में बनाया जाता है। बीच में पत्तें या प्लास्टिक की झिल्लियों को डालकर कर रस्सियों से मजबूती से बांध दिया जाता है और फिर छतोड़ी तैयार हो जाती है। एक समय था जब गाँवो मे बांस से बनी छतोडी ओढे महिलाये खेतो मे रोपा लगाते हुए दिखाई देती थी। छतोडी पर पड़ती वर्षा की बुन्दे टीप टीप की मधुर संगीत कानो मे घोलते रह्ती थी। छत्तीसगढ़ के गांवो में इन दिनो ंचरवाह सर पर छतोडी पह...