बस्तर के लोकगीत

बस्तर के लोकगीतो में प्रेमसंदेश *************************************** बस्तर में लोक गीतो का बडा ही महत्व हैं. लोक गीतो के मामले में बस्तर का आदिवासी समाज बडा ही सम्पन्न हैं. बस्तर में हर अवसर पर यहां के ग्रामीण गाते हैं. शुभकार्यो के अवसर पर , मेले मड़ई में , मृत्यु में , या किसी तीज त्योहारो के समय पर ये गाकर अपनी भावनाये प्रकट करते हैं. बस्तर के ह्ल्बी भतरी गोंडी सभी बोली में लोकगीतो का महत्वपूर्ण स्थान हैं. हर कार्य के पीछे लोक गीत जुडे हैं. बस्तर में लोकगीतो के माध्यम से बहुत सारी बाते बडी ही आसानी से कह दी जाती हैं. जब बात प्रेमसंबंधो की आती हैं तो उसमें भी लोकगीतो का बहुत ही सुन्दर तरिके से प्रयोग होता हैं. नायक अपनी नायिका को छेडने के लिये , बेहद ही सुन्दर तरिके से , लोक गीतो की पंक्तियो के माध्यम से अपने मन की बात कहता हैं. बस्तर की ह्ल्बी बोली में ऐसे प्रणय निवेदन के लिये एक छोटा सा लोक गीत हैं - " रांडी चो बेटी , बाट चो खेती , कनक चुडी धान ! बाना पाटा के ओछा नोनी, खिंडिक रहो ठान !" मतलब - ओ विधवा की बेटी , ओ , जन पथ की खेती सी , धान की फसल सी तरूणी! ओ श्रमिके , ...