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सुकमा के जमींदार

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सुकमा के जमींदार - रामराज और रंगाराज आज हम बात करते है सुकमा की। सुकमा 2012 में दंतेवाड़ा से अलग होकर नया जिला बना है। सुकमा का नाम लगभग आप सभी ने माओवादी घटनाओं के कारण ही सुना होगा। सुकमा का अपना अलग इतिहास रहा है। सुकमा रियासत कालीन बस्तर में एक बड़ी जमींदारी रही है। चक्रकोट (प्राचीन बस्तर) में सन 1324 में अन्नमदेव ने अंतिम नाग शासक राजा हरिशचंद्र देव पर विजय पाकर बस्तर में चालुक्य वंश की नींव रखी। सुकमा राजपरिवार की अन्नमदेव से पूर्व यहां आने के कुछ सुत्र मिलते है।  सुकमा राजपरिवार ने अन्नमदेव की अधीनता स्वीकार कर बस्तर राज परिवार से अपने वैवाहिक संबंध स्थापित किये। सुकमा राजपरिवार की कुल 09 राजकुमारियां बस्तर राज परिवार को ब्याही गई ऐसी जानकारी बस्तर इतिहास में मिलती है। रियासत काल में सुकमा को जमींदारी बना दी गई। सुकमा राजपरिवार से जुड़ी एक बेहद रोचक मिलती है वो यहां के जमींदारों के नामों के क्रमिकता। भारत की आजादी तक सुकमा के लगभग 11 पीढ़ियों में जमींदारों के नाम रामराज और रंगाराज मिलते है। यदि पिता का नाम रामराज तो बेटा रंगाराज कहलाता।  इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी बस्त...