श्येनपालन
बस्तर में आज भी प्रचलित है श्येनपालन की आदिम परंपरा.......! आदिकाल से इंसानों का पक्षियों के प्रति एक विशेष आकर्षण देखने को मिलता है। हमारे देवी देवताओं में भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ पक्षी है वहीं लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू है। देवों के सेनापति कार्तिकेय का वाहन मयूर है। और अन्य कई देवी देवताओं के वाहन के रूप में पक्षियों का नाम विभिन्न धार्मिक ग्रंथो में मिलता है। इंसानी आवाज बोलने के अदभूत गुण वाला तोता धरो-धर पाला जाता है। पक्षियों के शिकार कौशल को अपने फायदे के लिये कैसे उपयोग किया जाये ? इस बात को ध्यान में रखते हुये इंसानों ने बाज शिकरा जैसे शिकारी पक्षियों का पालतू बनाना प्रारंभ किया। इन पक्षियों को पालतू बनाकर शिकार के लिये प्रशिक्षित किया जाता है। इस कला को श्येनपालन कहा जाता है। इस कला का ज्ञान मनुष्य को सदियों से है। भारत में विशेषत मुगलों के शासनकाल में इस कला को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला था। क्रीड़ा के रूप में लड़ाकू जातियों में श्येनपालन बराबर प्रचलित रहा है।आज इसका प्रचार अधिक नहीं है। शौक के रूप में आज भी बस्तर में श्येनपालन कुछ क्षेत्रो में प्रचलित है। शि...