बस्तर के लोकगीत

बस्तर के लोकगीतो में प्रेमसंदेश
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बस्तर में लोक गीतो का बडा ही महत्व हैं. लोक गीतो के मामले में बस्तर का आदिवासी समाज बडा ही सम्पन्न हैं. बस्तर में हर अवसर पर यहां के ग्रामीण गाते हैं. शुभकार्यो के अवसर पर , मेले मड़ई में , मृत्यु में , या किसी तीज त्योहारो के समय पर ये गाकर अपनी भावनाये प्रकट करते हैं. बस्तर के ह्ल्बी भतरी गोंडी सभी बोली में लोकगीतो का महत्वपूर्ण स्थान हैं. हर कार्य के पीछे लोक गीत जुडे हैं. बस्तर में लोकगीतो के माध्यम से बहुत सारी बाते बडी ही आसानी से कह दी जाती हैं.



जब बात प्रेमसंबंधो की आती हैं तो उसमें भी लोकगीतो का बहुत ही सुन्दर तरिके से प्रयोग होता हैं. नायक अपनी नायिका को छेडने के लिये , बेहद ही सुन्दर तरिके से , लोक गीतो की पंक्तियो के माध्यम से अपने मन की बात कहता हैं. बस्तर की ह्ल्बी बोली में ऐसे प्रणय निवेदन के लिये एक छोटा सा लोक गीत हैं -
" रांडी चो बेटी , बाट चो खेती ,
कनक चुडी धान !
बाना पाटा के ओछा नोनी,
खिंडिक रहो ठान !"
मतलब - ओ विधवा की बेटी , ओ , जन पथ की खेती सी , धान की फसल सी तरूणी! ओ श्रमिके , अपना रंगीन वस्त्र बिछाकर थोड़ा आराम कर ले , परंतु थोडी सी जगह ज़रूर रहे.

एेसे निवेदन पर यहां के लोकगीतो में बडा ही सुन्दर जवाब होता हैं. एेसे प्रणय निवेदन की स्वीकृति में भतरी बोली में उस नायिका का यह जवाब होता हैं -
"ज़े दिने धरिब मोहरी हात ,
सेई दिने निन्दा नास !
कुटुम खाईबे भात !
तमर-आमर सूरती हेले ,
लोक बलिबे महत!"
मतलब - ज़िस दिन तुम मेरा हाथ पकड़ लोगे , उसी दिन तुम्हारे साथ मेरा ब्याह हो जायेगा , उसी दिन लोक निन्दा समाप्त हो जायेगी. रिश्तेदार सब भोज में शामिल होंगे , परंतु हम दोनो में प्रीति होनी चाहिये. लोग इसे अच्छा कार्य समझेंगे!
बस्तर में लोकगीतो में बहुत ही स्वच्छन्दता हैं इनमे तनिक भी बनावटीपन का अहसास नही होता हैं. बस्तर में यहां के आदिम निवासियो की हर य़ात्रा एक गीत य़ात्रा हैं जो आदिकाल से चली आ रही हैं. आशा हैं यह गीतय़ात्रा यूँ ही चलती रहेगी!
--ओम सोनी

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