कर्णेश्वर मंदिर सिहावा

कर्णेश्वर महादेव मंदिर सिहावा......!

#सावन_मे_बस्तर_के_शिवालय_तीसरा_सोमवार

कांकेर एक अलग रियासत रही है। कांकेर का अपना समृद्ध इतिहास रहा है। आजादी के बाद बस्तर और कांकेर दोनो रियासतों को मिलाकर बस्तर जिला बना दिया गया था। आज बस्तर जिले में कुल 7 जिले है एवं संभाग का नाम बस्तर है। 

कांकेर मे ग्यारहवी सदी से चौदहवी सदी के पूर्वाद्ध तक सोमवंशी राजाओं का शासन था। सोमवंशी शासकों ने कांकेर के अलावा सिहावा क्षेत्र में भी अपनी राजधानी बनाई थी। सिहावा क्षेत्र वर्तमान धमतरी जिले के अंतर्गत आता है। सिहावा 1830 ई तक बस्तर रियासत का महत्वपूर्ण परगना था।  


सिहावा में कांकेर के सोमवंशी राजा कर्णदेव द्वारा बनवाये हुये कुल 5 प्राचीन मंदिर है। इन मंदिर समूह को कर्णेश्वर महादेव मंदिर समूह के नाम से जाना जाता है। इन मंदिरों में एक मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। दुसरा मंदिर रामजानकी मंदिर है जिसमें भगवान राम सीता लक्ष्मण की संगमरमर की नवीन प्रतिमा एवं विष्णु की दो तथा सूर्य की एक प्राचीन प्रतिमायें रखी हुई है। अन्य दो मंदिरों मे क्रमश भगवान गणेश, दुर्गा की प्रतिमायें कालांतर में रखी गई है। एक मंदिर बेहद छोटा है जिसमें सूर्य की प्रतिमा स्थापित है।


शिवमंदिर के मंडप की भित्ति में शिलालेख जड़ा हुआ हे। शिलालेख की भाषा संस्कृत और लिपि नागरी है। इस शिलालेख के अनुसार सोमवंशी राजा कर्ण ने स्वयं के पूण्य लाभ के लिये भगवान शिव और केशव के मंदिर बनवाये। राजा कर्ण ने अपने माता पिता के पूण्य लाभ के लिये त्रिशुलधारी शिव के दो मंदिर एवं अपने भाई रणकेसरी के लिये एक मंदिर बनवाया था।

इन मंदिर समुह से एक किलोमीटर की दुरी पर तालाब के किनारे एक प्राचीन कुंड है। इसके पास ही एक नदी बहती है। नदी के तट पर एक मंदिर के अवशेष बिखरे पड़े है। इस मंदिर का निर्माण कर्ण की रानी भोपल देवी ने करवाया था। जिसमें विष्णु की प्रतिमा स्थापित थी।


ये सभी मंदिर उड़िसा शैली में है। शिलालेख में तिथी शकसंवत 1114 ई सन 1192 अंकित है जो कि मंदिरों के निर्माण तिथी भी है।

नगरी से पहले बायीं तरफ पांच किलोमीटर दुर देव पुर गांव है इस देवपुर गांव के देउरपारा में ये मंदिर स्थित है। पास ही महानदी का उदगम एवं श्रृंगी ऋषि का आश्रम भी स्थित है।











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