Posts

Showing posts from January, 2019

रथ चुराने की 260 साल पुरानी परंपरा

Image
बस्तर दशहरा मे रथ चुराने की 260 साल पुरानी परंपरा - बाहर रैनी.....! माईजी की डोली जैसे ही रथ पर सवार होती है, उसके बाद रस्म के हिसाब से रथ चुराने की परंपरा का निर्वहन किया जाता है।  रथ चुराने के लिए किलेपाल, गढ़िया एवं करेकोट परगना के 55 गांवों से 4 हजार से अधिक ग्रामीण यहां पहुंचते है। रातोरात ग्रामीणों ने इस रथ को खींचकर करीब पांच किमी दूर कुम्हड़ाकोट के जंगलों में ले जाते है। इसके बाद रथ को यहां पेड़ों के बीच में छिपा दिया जाता हैं।  रथ चुराकर ले जाने के दौरान रास्ते भर उनके साथ आंगादेव सहित सैकड़ो देवी-देवता भी साथ रहते है। लाला जगदलपुरी जी अपनी पुस्तक बस्तर और इतिहास और संस्कृति में बाहर रैनी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां देते है। उनके अनुसार कुम्हड़ाकोट राजमहलों से लगभग दो मील दूर पड़ता है।  कुम्हड़ाकोट में राजा देवी को नया अन्न अर्पित कर प्रसाद ग्रहण करते है। बस्तर दशहरे की शाभा यात्रा में कई ऐसे   दृश्य हैं जिनके अपने अलग-अलग आकर्षण हैं और उनसे पर्याप्त लोकरंजन हो जाता है। राजसी तामझाम के तहत बस्तर दशहरे के रथ की प्रत्येक शोभायात्रा में पहले सुसज्जित हा...

बस्तर का सबसे उंचा झरना

Image
स्टेच्यू आफ यूनिटी की उंचाई का बस्तर  में  एक झरना.......! बस्तर की धरती में अनगिनत ऐसे स्थल है जिसे देखे बिना आपका भारत भ्रमण पुरा नहीं हो सकता है। यहां के इन प्राकृतिक उपहारो ने राज्य और देश में नहीं, वरन पुरे विश्व में अपने अनूठेपन की छाप छोड़ी है। उदाहरण के तौर पर चित्रकोट जलप्रपात जिससे आप सभी परिचित होंगे, इस झरने की चौड़ाई ने पुरे भारत में सर्वाधिक चौड़ाई वाले झरने का खिताब दिया है।  चित्रकोट झरने को देखने के लिये हर वर्ष हजारों देशी विदेशी पर्यटक बस्तर आते है। चित्रकोट झरने की तरह कांगेर घाटी की कुटूमसर गुफा अपने अदभूत झूमर आकृतियों के लिये विश्वप्रसिद्ध है। हर वर्ष हजारों विद्यार्थी इस गुफा की गहराई में उतरकर प्राकृतिक कलाकृतियों को निहारते है। अंधी मछलियों को गुफा में देखने आते है। अभी कुछ दिनों पहले गुजरात में नर्मदा सरोवर स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा का अनावरण किया गया है। देश की एकता के प्रतीक स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत के प्रथम उप प्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक स्मारक है।यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है जिसकी लम्बाई 182 मीटर ...

श्येनपालन

Image
बस्तर में आज भी प्रचलित है श्येनपालन की आदिम परंपरा.......! आदिकाल से  इंसानों का पक्षियों के प्रति एक विशेष आकर्षण देखने को मिलता है। हमारे देवी देवताओं में भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ पक्षी है वहीं लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू है। देवों के सेनापति कार्तिकेय का वाहन मयूर है। और अन्य कई देवी देवताओं के वाहन के रूप में पक्षियों का नाम विभिन्न धार्मिक ग्रंथो में मिलता है। इंसानी आवाज बोलने के अदभूत गुण वाला तोता धरो-धर पाला जाता है। पक्षियों के शिकार कौशल को अपने फायदे के लिये कैसे उपयोग किया जाये ? इस बात को ध्यान में रखते हुये इंसानों ने बाज शिकरा जैसे शिकारी पक्षियों का पालतू बनाना प्रारंभ किया।  इन पक्षियों को पालतू बनाकर शिकार के लिये प्रशिक्षित किया जाता है। इस कला को श्येनपालन कहा जाता है। इस कला का ज्ञान मनुष्य को सदियों से है। भारत में  विशेषत मुगलों के शासनकाल में इस कला को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला था। क्रीड़ा के रूप में लड़ाकू जातियों में श्येनपालन बराबर प्रचलित रहा है।आज इसका प्रचार अधिक नहीं है। शौक के रूप में आज भी बस्तर में श्येनपालन कुछ क्षेत्रो में प्रचलित है। शि...