सरोवर के किनारे, नागवंशी राजा जगदेकभूषण धारावर्ष और सामंत चन्द्रादित्य का वार्तालाप !!
ज़रूर जाने चन्द्रसरोवर बारसुर के बारे में !!
नागवंशियो का ऐतिहासिक ताल , जलक्रीड़ा करते उसमें बाल!!
खिला किनारे उसके पलाश , बारसुर ने किया हैं मोहपाश !!
छिन्दक नागवंशी शासको ने बस्तर में कई सदियो तक शासन किया हैं. आज के बारसुर को तत्कालीन छिन्दक नागवंशी शासको की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हैं. नागवंशी शासनकाल में बारसुर बस्तर का सर्वाधिक बड़ा एवँ महत्वपूर्ण नगर था. विभिन्न शासको ने बारसुर में अनेको मन्दिरो एवँ तालाबो का निर्माण करवाया था. बस्तर भूषण के अनुसार मन्दिरो की संख्या 147 थी एवँ इतने ही तालाब भी बनवाये गये थे. सच में , बारसुर में 147 मन्दिर एवँ इतने ही तालाब ज़रूर रहे होंगे , इसमें ज़रा भी संदेह नहीं हैं.
आज भी कुछ मन्दिर सही अवस्था में विद्यमान हैं , कुछ ध्वस्त अवस्था में हैं , कुछ मन्दिरो के तल के अवशेष ही हैं , और कुछ तो अभी टीलो में दबे हुए हैं जो आज भी दुनिया के सामने आने के लिये इंतजार में हैं. छिन्दक नागवंशी शासको ने मन्दिरो के साथ साथ जन कल्याण के लिये सैकड़ो तालाब भी खुदवाये थे. उनमे से कुछ तालाब आज भी हैं , कुछ सुख गये , तो कुछ खेतो में तब्दील हो चुके हैं. गूगल अर्थ की सहायता से बारसुर के तालाब देखे ज़ा सकते हैं.
बारसुर में ऐसा ही एक विशाल तालाब हैं जिसे आज बुढ़ा तालाब कहा जाता हैं. यह तालाब लगभग एक हजार वर्ष पुराना हैं. तत्कालीन समय राजधानी होने के कारण बारसुर बहुत ही बड़ा नगर था. राज परिवार , शासन के बड़े अधिकारी एवँ हजारो लोग बारसुर में ही निवास करते थे. उनकी पेयजल एवँ जल से सम्बंधित सारी आवश्यकताये इन तालाबो से ही पुरी होती थी.
बारसुर के इस बुढा तालाब का अपना एक इतिहास हैं. बारसुर में मिले एक शिलालेख के अनुसार 1060 ईस्वी में छिन्दक नागवंशी राजा जगदेकभूषण धारावर्ष का शासन था. उनके एक सामंत थे चन्द्रादित्य महाराज. वे अम्मा ग्राम के स्वामी थे.ये बडे ही दयालू , भगवान की भक्ति में लीन रहने वाले लोकप्रिय व्यक्ति थे. इन्होने बारसुर में भगवान शिव को समर्पित एक मन्दिर का निर्माण करवाया था जो उनके नाम पर चन्द्रादित्य मन्दिर के नाम से जाना जाता हैं. यह मन्दिर वर्तमान में सुरक्षित अवस्था में आज भी बारसुर में विद्यमान हैं. धुप में लोगो के विश्राम हेतु विशाल उपवन भी बनवाया था. मन्दिर के पास ही जनकल्याण के लिये एक विशाल तालाब खुदवाया था यह तालाब उनके नाम पर चन्द्र सरोवर के नाम से जाना जाता था. वर्तमान में यह बुढ़ा तालाब के नाम से अध्यतन लोगो की जल सम्बंधी आवश्यकताओ की पूर्ति कर रहा हैं.
महाशिवरात्री के दिन तुलार से वापसी के समय मैं और मेरे मित्र कुलेश्वर दोनो इस प्राचीन तालाब और किनारे लगे टेसू के वृक्ष की खूबसुरती को निहारने हेतु , कुछ समय के लिये इसके पास रुक गये थे. वहां मैं अपनी कल्पना में खो गया था. हम दोनो के बीच कुछ बाते भी हूई थी. आईये अाप भी मेरी कल्पना में खो जाईये.
तत्कालीन राजधानी बारसुर में महाशिवरात्री के दिन सभी शिवालयो में प्रजा भगवान शिव की पूजा अर्चना में व्यस्त थे, राजधानी की सारी प्रजा शिव की भक्ति में डूबी हूई थी , पुरा बारसुर शिवमय हो गया था. पलाश (टेसू) के लाल , भगवा रंग के फूलो से पुष्पित हजारो वृक्ष राजधानी और चन्द्रसरोवर की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे.
राजा धारावर्ष और सामंत चन्द्रादित्य आज राजधानी में शिवालयो में पूजा अर्चना कर रथ में सवार होकर राजधानी से कुछ दुरी पर स्थित तुलार के गुहा में स्थापित शिवलिंग के दर्शन हेतु गये थे. वापस राजधानी में आने में उन्हे सायं हो गयी थी.
राजा धारावर्ष ने राजधानी में प्रवेश करते ही सारथी को चन्द्रसरोवर के पास रोकने का आदेश दिया. रथ के पहिये सरोवर के सामने रुक गये.
सायं 4 बजे का समय था, आसमान में काले बादल छाये हुए थे , सूर्य की रोशनी मद्धम पड गयी थी, सरोवर का जल ह्ल्का सुनहरा दिखाई पड रहा था , आसमान में छाये काले बादलो के कारण कालिमा युक्त वातावरण था , चारो तरफ टेसू के लाल फूलो से लदे वृक्ष सरोवर की खूबसूरती को दुगुना कर रहे थे , ह्ल्की हवा चल रही थी .
दोनो रथ से नीचे उतरकर सरोवर के सामने पहूँच गये , दोनो में वार्तालाप होने लगा ...
सामंत चन्द्रादित्य - प्रभु , क्षमा चाहता हूँ ,परंतु यहां सरोवर के सामने इस प्रकार विचरण करने का उद्धेश्य जान सकता हूँ.
राजा धारावर्ष - सामंत , मैं आपके निर्देशन में बने इस सरोवर की खूबसूरती को निहारना चाहता था. वाह ! यहां की खूबसूरती को देख कर बहुत आनन्द हो रहा हैं.
सामंत - प्रभु , भगवान शिव के आशिर्वाद से आज यह आनन्दित दृश्य हमे दिखाई दे रहा हैं.
सामंत चन्द्रादित्य - महाराज , इतने आरामदायी रथ होने के बाद भी शरीर के अंगो में हल्का दर्द हो रहा हैं, प्रभु , आपके मुख पर भी दर्द परिलक्षित हो रहा हैं.
राजा धारावर्ष - तुलार के मार्ग की कष्टदायी यात्रा से उत्पन्न मेरा यह दर्द तो कुछ समय में दूर हो जायेगा. आपने तो इस सरोवर का निर्माण करवा कर , यहां की प्रजा की जल समस्या का निवारण कर उनका दर्द दूर किया हैं.
सामंत - महाराज, यह सब आपकी कृपा हैं. अाप बहुत महान हैं जो जन कल्याण से जुडे कार्यो के लिये मुक्तहस्तो से धन उपलब्ध कराते हैं.
सामंत - (सरोवर में जल क्रीडा करते हुये बालको की तरफ इशारा करते हुए कहा) , राजन , वहां देखिये , नन्हे राजकुमार, अपने मित्रो के साथ , निर्वस्त्र होकर जलक्रीडा कर रहे हैं.
राजा - सामंत , यह आपकी मेरे उपर बहुत बडी कृपा हैं. इस सरोवर के निर्माण के बाद आज नन्हे राजकुमार और उसके मित्रो की जल क्रीडा करने में मिल रहे खुशी को देख कर मेरा मन बेहद प्रफुल्लित हो गया. आज उनके चेहरो की यह हँसी बहुत ही मुल्यवान हैं. उनके मुख पर जल के अपव्यय का अब भय नहीं हैं. बडी नीडरता एवँ उन्मुक्त होकर वे जलक्रीडा कर रहे हैं.
सामंत जलक्रीडा में व्यस्त राजकुमारो को निर्वस्त्र देखकर अपनी हँसी को ना रोक पाये और जोर जोर से हँसने लगे.
राज़ा - सामंत , अपनी इस तेज हँसी पर लगाम रखो , आज़ हम जलक्रीडा करते बालको की खुशी में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं चाहते हैं. उन्हे जी भर कर जल क्रीडा करने दो.
सामंत - क्षमा चाहता हूँ राजन , मैं पहली बार राज़कुमारो को इस प्रकार निर्वस्त्र होकर जल क्रीडा करते देखा , इस कारण अपनी हँसी रोक नहीं पाया.
राजा - भविष्य में इस बात का ध्यान रखे ,सामंत. बालको की यह आनन्दबेला बहुत ही मुल्यवान हैं. मैं आपके अन्तरमन की कल्पनाओ को समझ सकता हूँ.
सामंत - (थोडी चापलूसी करते हुए ) राजन, आपके राजत्व काल में प्रजा बेहद सुखी हैं, चारो तरफ सुखमय वातावरण हैं. प्रजा सम्पन्न हैं. आज प्रजा सभी शिवालयो में यही मन्नत मांग रही हैं कि अगले जन्म में भी हम परम प्रतापी , वीर , परम महेशवर , जगदेकभूषण श्रीमंत धारावर्ष ही हमारे राजा के रूप में प्राप्त हो.
राजा - मुख पर ह्ल्की सी मुस्कुराहट.
सामंत - सत्य प्रभु , आपके शासन में प्रजा निर्भीक एवँ नीडर होकर रहती हैं. वही यहां के पशु - पक्षी भी बेहद नीडर होकर जीवन का सुख् भोग रहे हैं. (सामंत ने एक टेसू के वृक्ष में फूलो के रसास्वादन करते हुए पक्षी की तरफ इशारा किया)
वो देखिये राजन ! एक पक्षी भी आपके इस सुखमय शासन में नीडर होकर टेसू के लाल फुलो का रसपान कर रहा हैं जो इस बात का सबूत हैं कि आपके राजत्व काल में प्रजा के साथ पशु पक्षी भी पुरी स्वतंत्रता से जीवन य़ापन करते हैं. उन्हे अकारण परेशान नहीं किया जाता हैं. सभी को अभय प्राप्त है. वे पुरी नीडरता से विचरण कर सकते हैं , अपनी बात कह सकते हैं.
राजा के मुख पर गर्व झलकने लगा , गर्विली मुस्कान छा गयी. वे पक्षी की तरफ एकटक देखने लग गये.
तभी सामंत ने राजा को जोर से हिलाया , राजा का ध्यान पक्षी पर से हट गया.
राजा ने सामंत से पुछा- क्या हुआ ?
सामंत (कुलेश्वर)- ओम ,कौवा को क्या देख रहा हैं ? घर नहीं चलना हैं क्या? लेट हो रहा हैं.
राजा धारावर्ष (ओम) - हां , हां , चल-चल निकलते हैं. मैं भी कहां खो गया था यार.
सीना तानकर , चेहरे पर गर्व से भरी मुस्कान लेकर , रथ (बाईक) पर सवार होकर हम घर की ओर निकल पडे.
यह बुढ़ा तालाब हजार सालो से नगर के लोगो एवँ पशुओ के पीने ,स्नान आदि ज़रूरत को पुरा कर रहा हैं. कई सालो से यह तालाब गंदगी एवँ ज़लीय पौधो से भरा हुआ था , तालाब के आसपास गंदगी का आलम था किन्तु ज़िला प्रशासन एवँ स्थानीय लोगो ने इस तालाब को वैसे ही साफ सुथरा एवं स्वच्छ कर दिया ,जैसा यह हमारे अर्थात राजा धारावर्ष के शासन अवधि में था
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