बारसूर का बत्तीसा मंदिर Battisa Mandir Barsur
बारसूर का बत्तीसा मंदिर
वीर सोमेश्वरा एवं गंगाधरेश्वरा नामक दो शिवालयों का संयुक्त मंडप युक्त बस्तर में एक मात्र मंदिर।
ओम सोनी
वीर सोमेश्वरा एवं गंगाधरेश्वरा नामक दो शिवालयों का संयुक्त मंडप युक्त बस्तर में एक मात्र मंदिर।
ओम सोनी
बारसूर का बत्तीसा मंदिर बस्तर के सभी मंदिरों में अपना विशिश्ट स्थान रखता है। बारसूर नागकालीन प्राचीन मंदिरों के लिये पुरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। यहां के मंदिरों की स्थापत्य कला बस्तर के अन्य मंदिरों से श्रेश्ठ है। बारसूर का यह युगल षिवालय बस्तर के सभी षिवालयों मंे अपनी अलग पहचान रखता है। बत्तीसा मंदिर में दो गर्भगृह , अंतराल एवं संयुक्त मंडप है।
महाराजाधिराज स्वयं उपस्थित !
यह मंदिर पुरे बस्तर का एकमात्र मंदिर है जिसमें दो गर्भगृह एवं संयुक्त मंडप है। मंडप बत्तीस पाशाण स्तंभों पर आधारित है जिसके कारण इसे बत्तीसा मंदिर कहा जाता है। मंडप में प्रवेश करने के लिये तीनों दिषाओ में द्वार है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख है जो कि तीन फूट उंची जगती पर निर्मित है। मंदिर में दो आयताकार गर्भगृह है। दोनो गर्भगृह में जलहरी युक्त शिवलिंग है। शिवलिंग त्रिरथ शैली में है। शिवलिंग की जलहरी को पकड़ पुरी तरह से घुमाया जा सकता है।
वीर सोमेश्वरा शिवलिंग |
गर्भगृहों के दोनो द्वार शाखाओं के ललाट बिंब में गणेशजी का अंकन है। दोनो गर्भगृहों के सामने एक एक नंदी स्थापित है। प्रस्तर निर्मित नंदी की प्रतिमायें बेहद अलंकृत है। मंदिर के चारों तरफ प्रदक्षिणा पथ है। मंदिर का शिखर नश्ट हो चुका है। अवशिश्ट शिखर पर द्रविड़ कला का प्रभाव दिखाई देता है। मंदिर का शिखर शिव मंदिर गुमड़पाल के शिखर के भांति रहा होगा।
मंदिर की दिवारें बेहद सादी है जिस पर किसी प्रकार का कोई अंकन या प्रतिमाये जड़ी हुयी नही है। यह मंदिर पुरी तरह से ध्वस्त हो चुका था , पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है।
महाराजाधिराज आराम करते हुये |
इस मंदिर से एक शिलालेख प्राप्त हुआ है। शिलालेख के अनुसार सोमेश्वरदेव की पटट राजमहिशी गंगामहादेवी द्वारा दो शिवमंदिरो का निर्माण कराया जिसमें एक शिवालय अपने पति सोमेश्वरदेव के नाम पर वीर सोमेश्वरा एवं दुसरा शिवालय स्वयं के नाम पर अर्थात गंगाधरेश्वरा के नाम से जाना जाता है। शिलालेख के अनुसार दिन रविवार फाल्गुन शुक्ल द्वादश शक संवत 1130 जिसके अनुसार 1209 ई इस मंदिर का निर्माण काल है। मंदिर के खर्च एवं रखरखाव के लिये केरामरूका ग्राम दान में दिया गया था।
इस कार्य में मंत्री मांडलिक सोमराज, सचिव दामोदर नायक, मेंटमा नायक , चंचना पेगाड़ा, द्वारपाल सोमीनायक, गुडापुरऐरपा रेडडी, विलुचुदला प्रभु, प्रकोटा कोमा नायक गवाह के रूप में उपस्थित थे। यह षिलालेख वर्तमान में नागपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।
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