बस्तर का तक्षक नाग Flying Snake of Bastar

 बस्तर का तक्षक नाग

Flying Snake of Bastar

ओम सोनी


बस्तर घने जंगलो के कारण वन्य जीवों से समृद्ध रहा है। अत्यधिक षिकार एवं जंगलो की कटाई से बहुत से वन्य जीव बस्तर से लुप्त हो चुके है। आज भी बस्तर के कुछ क्षेत्रों की वन संपदा आमजनों से अछुती है। दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा के बैलाडीला के जंगल आज भी वन्य जीवों के रहवास के आदर्ष स्थल है। जब बात रेंगने वाले जीवों  अर्थात सर्प प्रजाति की होती है तो भी उस मामले में भी बस्तर के जंगल अव्वल है। दक्षिण बस्तर में बैलाडिला की पहाड़ियों के जंगल में एवं बस्तर के अन्य जंगलो  में  आज भी पौराणिक सांप तक्षक कभी कभी उडते हुये दिखायी पड़ता है। स्थानीय स्तर पर इसे उड़ाकू सांप भी कहा जाता है। 



महाभारत के बाद राजा परीक्षित इस तक्षक नाग से जुड़ा एक प्रसंग है जिसके अनुसार श्रंृगी ऋशि ने महाराज परीक्षित को श्राप दिया था कि तुम्हारी मृत्यु तक्षक नाग के डसने से होगी। तक्षक नाग के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गयी तब परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक नाग से बदला लेने के लिये सर्प यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में सभी संप आकर गिरने लगे तब तक्षक नाग डरकर इंद्र की षरण में गया। जैसे ही यज्ञ करने वाले ब्राहमण ने तक्षक नाग की आहुति डाली वैसे ही तक्षक नाग देवलोक से यज्ञ में गिरने लगा। किन्तु आस्तीक ऋशि ने अपने मंत्रो से तक्षक नाग को आकाष में ही रोककर स्थिर कर दिया। 

मैने इस सर्प को तीन बार देखा है। यह बड़ी तेजी से एक पेड़ से दुसरे पेड़ तक लंबी छलांग मारता है। जैसे ही पलक झपके वैसे ही यह दुर अगले वृक्ष में दिखाई पड़ता है। सर्प वैज्ञानिकों के अनुसार यह तक्षक नाग अपनी पसलियों को फैला लेता है। षरीर के निचले भागों को अंदर कर उसमें हवा भर लेता है। जिससे यह हल्का हो जाता है। ऐसा करने के बाद वह पेड़ो से लंबी छलांग लगाता है। छलांग लगाते समय यह अपने षरीर को अंग्रेजी के एस अक्षर की तरह मोड़ लेता है। इसकी छलांग बहुत लंबी होती है। मैने इसकी छलांग लगभग 50 से 60 फिट तक देखी है। यह इससे भी कई गुना अधिक लंबी छलांग मारता है। 

सरीसृपों के मषहुर वैज्ञानिक श्री एच0के0एस0 गजेन्द्र सर ने बस्तर के सरीसृपों पर बहुत षोध किया है। दक्षिण बस्तर में पहली बार तक्षक नाग की खोज भी उन्होने ही की है। उनके अनुसार इस प्राचीन तक्षक नाग का वैज्ञानिक नाम क्राइसोपेलिया आर्नेटा या ग्लाईडिंग स्नेक भी कहा जाता है। बैलाडिला की पहाडियों का जंगल इस सर्प के रहवास के लिये बेहद उपयुक्त है।  उन्होने अब तक सरीसृपों की 59 प्रजातियों की पहचान की है जो बस्तर में पाये जाते है। जिसमें 5 सांपो की एवं 1 कछुये की प्रजाति जो प्रदेष के लिये नई है। डॉण् गजेंद्र ने तक्षक के अलावा इस क्षेत्र में रूखचघा सांप ;डेण्ड्रीलेफिस ट्रिसटिसद्धए पेड़ चिंगराज ;बोइगा गोकुल. पूर्वी मांजराद्धए पानी चिंगराज ;बोइगा फारेस्टेनी. फार्सटन मांजराद्धए बेशरम सांप ;ट्राइमेरिसुरस ग्रेमिनियस द्ध जिसे हरा गर्तघोणा या ग्रीन पिट वाइपर की खोज की है। उन्होंने ही बैलाडीला पहाड़ के पश्चिमी घाटए जो बीजापुर जिले का क्षेत्र हैए वहां दुर्लभ सितारा कछुए की खोज की है। इस कछुए का जुलॉजिकल नेम जिओचिलोन एलिगेंस है।

फोटो , कथा - नेट से , हम तो बस उस सांप के उड़ान को देखते ही रह गये , फोटो खीचने का मौका ही नहीं मिला। 

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