नाग स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण - मामा भांजा मंदिर बारसूर
नाग स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण - मामा भांजा मंदिर
बारसूर का ऐतिहासिक मामा भांजा मंदिर आज बारसूर का पर्याय बन चुका है। मामा भांजा नाम की यह ऐतिहासिक धरोहर आज के समय में नागकालीन स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण के रूप में हमारे सामने है। यह मंदिर बारसूर में नाग युग के स्वर्णिमकाल से वर्तमान तक के कई घटनाओं का साक्षी रहा है।इस मंदिर की स्थापत्यकला , इसके समान ही निर्मित समलूर, नारायणपाल, गढ़िया के मंदिरो की स्थापत्यकला में सर्वश्रेश्ठ है।
यह मंदिर पूर्वाभिमुख है जो कि गर्भगृह एवं अंतराल में विभक्त है। गर्भगृह की दीवारों पर कीर्तीमुख एवं जंजीरो में टंगी हुयी घंटियां बनी हुयी है। द्वार शाखा के मध्य में चतुर्भुजी गणेशजी का अंकन किया गया है।
यह मंदिर मूल रूप से भगवान शिव को समर्पित था। वर्तमान में गर्भगृह में भगवान गणेश एवं भगवान नरसिंह की दो छोटी प्रतिमायें स्थापित है। जो कि बाद में ग्रामीणों के द्वारा रखी गयी है।
मंदिर के बाहरी तरफ बने हुये मनुष्य के मुख से किंवदंती जुड़ी हुयी है जिससे मंदिर का नाम मामा भांजा पड़ गया। बस्तर भूषण में केदारनाथ ठाकुर ने इस मंदिर के बारे मंे बडे ही रोचक जानकारी दी है। उनके अनुसार उत्कल देश के गंग राजा की छः संताने थी एवं एक संतान दासी से उत्पन्न हुयी थी। राजा की दासी ने राजा को वश मेें कर अपने पुत्र को राजा बनवा दिया। राजा की अन्य संतानों को राज्य से बाहर खदेड़ दिया। वे सभी छः भाईयों ने तत्कालीन चक्रकोट में आकर बालसूर्य नगर की स्थापना की। बालसूर्य नगर की स्थापना के बाद गंग राजाओं ने कई कारीगरों को बुलाकर इस नगरी में कई मंदिर बनवाये। कई तालाब भी खुदवाये। गंग राजा का भांजा बहुत ही बुद्धिमान था। भांजे ने उत्कल देश से कारीगरों को बुलवा कर मंदिर बनवाया। मंदिर की उच्च कोटी की बनावट और सुंदरता को देखकर गंग राजा के मन में जलन की भावना उत्पन्न हो गयी। राजा में मंदिर पर अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिश की जिसके फलस्वरूप मामा और भांजे में युद्ध हुआ । युद्ध में भांजे की जीत हुयी , गंग राजा को जान से हाथ धोना पड़ा। बाद में भांजे ने मामा के मुख की मूर्ति बनवा कर मंदिर के सामने लगा दी और स्वयं की मूर्ति मंदिर के अंदर स्थापित करवायी।
हालांकि यह सिर्फ एक किंवदंती है। इस किंवदंती ने ही मंदिर को मामा भांजा जैसा अदभुत नाम दिया । वर्तमान में यह मंदिर बारसूर के अतीत की गौरव गाथाओं को संजोये हुये शान से खड़ा है। शासन प्रशासन के प्रयासों के कारण सुरक्षित यह मंदिर आज भी हमें बस्तर के स्वर्णिम युग का स्मरण कराता रहता है।
--- ओम सोनी
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