विलुप्ति के कगार पर - बस्तर का वन भैंसा

विलुप्ति के कगार पर - बस्तर का वन भैंसा



बस्तर अत्यधिक वनसंपदा के कारण वन्य जीवों के मामले में भी संपन्न रहा है। परन्तु पिछले सौ सालों में अंधाधुंध शिकार के कारण बस्तर में अब बहुत से वन्य जीव लुप्त हो चुके है और अधिकांशतः विलुप्ति के कगार पर है। बस्तर में हाथी, सिंह, बाघ,, जंगली भैंसा, गौर, नीलगाय जैसे बड़े स्तनपायी वन्य जीव बहुतायत में थे। अंग्रेजों के शासन में ही जंगली भैंसों, बाघों का अंधाधुंध शिकार किया गया जिसके कारण ये बस्तर से लगभग विलुप्त हो चुके है। अंग्रेजो द्वारा किये गये वन भैंसो के शिकार, से जुड़े रोचक किस्से आज भी इतिहास में दर्ज है। 

छत्‍तीसगढ राज्‍य का राजकीय पशु वन भैंसा(Wild Buffalo) अर्थात Bubalus Bubalis है।  वन भैंसा छत्‍तीसगढ के दुर्लभ एवंसंकटग्रस्‍त प्रजातियों में से एक है। एक समय में ये प्रजाति अमरकंटक से लेकर बस्‍तर तक बहुत अधिक संख्‍या में पाया जाता था किन्तु अब मात्र उदंती अभ्यारण्य और बस्तर में इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान और भैरमगढ अभ्यारण्य में ही पाया जाता है। उदंती अभ्यारण्य में 8-9 ही वनभैंसे है जिसमें से एक मात्र मादा भैंसा है जिसका नाम आशा रखा गया है। 

छ0ग0 में उदंती अभ्यारण्य के अलावा दक्षिण बस्तर के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान और भैरमगढ़ अभ्यारण्य में वन भैंसे पाये जाते है। भैरमगढ़ अभ्यारण्य तो विशेष रूप से वन भैंसो के लिये ही संरक्षित है। यदा कदा इनके झुंड विचरण करते हुये दिखायी पड़ते है। कुटरू के आसपास इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में भी वन भैंसो के झुंडों की विचरण की जानकारी मिलती रहती है। यहां पाये जाने वाला वन भैंसें की नस्‍ल सर्वाधिक शुध्‍द है अत: छत्‍तीसगढ राज्‍य के वन भैंसे का विशेष महत्‍व है, इस कारण से छत्‍तीसगढ शासन द्वारा इसे राज्‍य पशु का दर्जा दिया गया है।

वन भैंसे बहुत हद तक स्थानीय पालतु भैंसो से मिलते जुलते है। जंगली भैंसा आमतौर पर पालतु भैंसा से संपर्क स्थापित कर लेता है। कई शोधकर्ताओ का मानना है कि जंगली भैंसा पालतु नर भैंसा को मादा के पास ही नहीं आने देता है वहीं जंगली भैंसा पालतू मादा भैंसा से संपर्क स्थापित कर लेता है। 

भैरमगढ़ वन भैंसा अभ्यारण क्षेत्र में प्रवेश हेतु भैरमगढ़ पहुँच कर वनमार्गों के द्वारा अभ्यारण क्षेत्र में भ्रमण किया जा सकता है  तथा इसी मार्ग पर बीजापुर से 35 किमी दूर ग्राम माटवाड़ा से भी अभ्यारण क्षेत्र में प्रवेश किया जा सकता है  सामान्यत 15 दिसम्बर से 15 जून तक निजी व्यवस्था से पहुंचा जा सकता है।


माओवादी प्रभाव एवं अवैध शिकार के कारण बस्तर का वन भैंसा अब विलुप्ति की कगार पर है। इसका संरक्षण किया जाना अति आवश्यक है , नहीं तो ये भी हाथियों की तरह बस्तर से सदा के लिये विलुप्त हो जायेगे। 

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