बाहर आता बारसूर का इतिहास !

बाहर आता बारसूर का  इतिहास !

                                                                                                                                                   ओम सोनी, एम0ए0 इतिहास गोल्डमेडलिस्ट दंतेवाड़ा  

बारसूर नगर की धरती आज भी बहुत से प्राचीन मंदिरों एवं उनके अवषेशों को अपने अंदर समेटे हुये है। हजारों वर्शो से ये प्राचीन मंदिर एवं उनके अवषेश जमीन में दबे हुये है। हाल के कुछ वर्शो मे बारसूर में इन मंदिरों के अवषेशों को बाहर लाने के लिये कुछ हलचल हुयी है। बारसूर के गणेषमंदिर परिसर मे पुराने ऐतिहासिक मंदिरों के अवषेशों का मलबा बिखरा पड़़ा था। पुरातत्व विभाग ने मलबे की सफाई की तो उस घ्वस्त मंदिर का एक अलग ही स्वरूप बाहर आया। मंदिर के गर्भगृह पर पड़े प्रस्तरों को हटाया गया तो उसमे एक जलहरी युक्त षिवलिंग बाहर आया। सरस्वती देवी की प्रतिमा बाहर आयी। 



गणेष मंदिर परिसर की पुरी मलबा सफाई एवं खुदाई के कार्य से पांच मंदिरों के अवषेश बाहर आये। जिनमें से एक मंदिर बड़ा एवं चार मंदिर छोटे है। यह मंदिर पंचायतन षैली मे है। गणेष प्रतिमाओं के सामने वाला बड़ा मंदिर मूलतः षिवमंदिर है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख है जो कि गर्भगृह, अंतराल एवं मंडप युक्त था । मंडप के सामने एक दुसरा गर्भ गृह खुदाई से बाहर आया है। मंदिर का मंडप स्तंभो से युक्त था। मंडप के अंदर से ही गर्भ गृह के लिये दोनो ओर प्रदक्षिणा पथ का निर्माण था। मंदिर के सामने वाले गर्भगृह से जलहरी प्राप्त हुयी है। यह बारसूर का अनोखा मंदिर था जिसमें दो गर्भ गृह आमने सामने थे। 


इस बडे मंदिर के दायी तरफ एक छोटा मंदिर खुदाई मे सामने आया जो कि पूर्वाभिमुख है। मंदिर के पीछे विपरित दिषा मे एक और मंदिर मलबे की सफाई में सामने आया जो कि पष्चिमामुभिमुख है। गणेष प्रतिमाओ के दायी तरफ ऐसे दो और मंदिर खुदाई में बाहर आये जो पूर्वाभिमुख है। एक मंदिर पर स्तंभो को खड़ा कर उस पर प्रस्तर की छत बना दी गयी जिसमें एक कलष रखा गया है। इस प्रकार 1 बडे मंदिर एवं चार छोटे मंदिर सहित कुल 05 मंदिर मलबा सफाई एवं खुदाई कार्य से बाहर आये है। इन सारे मंदिरों का नीचला हिस्सा ही मात्र षेश है। मंदिर के अवषेश किनारे एकत्रित रखे गये है। 


गणेषमंदिर परिसर मंे गणेषजी के 7 एवं 5 फीट उंची विषाल प्रतिमायें है जिन्हे संरक्षित किया गया है। कहा जाता है बारसूर में 147 मंदिर हुआ करते थे। आज भी बारसूर में बहुत से मंदिर है जो टीले में दबे हुये है जो इस इंतजार मे है कि कब बारसूर में उतखनन कार्य हो और सबके सामने बारसूर का पुरा इतिहास सामने आये

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