भीमा कीचक मंदिर मल्हार !
भीमा कीचक मंदिर मल्हार !
मल्हार छत्तीसगढ़ की प्रमुख प्राचीन नगरी है। मल्हार बिलासपुर से 40 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यह मस्तुरी ब्लाक से 15 किलोमीटर दुरी बिलासपुर रायगढ़ मार्ग पर स्थित है।
यहां पर प्राचीन काल के कई ऐतिहासिक मंदिर एवं टीले मौजुद है। प्राचीन समय में यह नगर मल्लाल एवं मल्लालपटटन के नाम से जाना जाता था। यहां हुये उत्खनन से इस स्थल की प्राचीन इतिहास एवं समृद्ध वैभव शाली संस्कृति का पता चलता है। 1873 में बेगलर ने यहां का भ्रमण किया था , उसने अपने रिपोर्ट में मल्हार के मडफोर्ट का जिक्र किया है।
यहां मिले सिक्कों से कई राजवंशों की जानकारी मिलती है। मल्हार में हुये उत्खनन से यहां मौर्य, सातवाहन, शरभपुरीय, सोमवंशी, एवं कल्चुरी राजवंश की संस्कृति की जानकारी प्राप्त हुयी है। मल्हार में डिडनेश्वरी देवी मंदिर, पातालेश्वर मंदिर, भीमाकीचक मंदिर ऐतिहासिक महत्व के मंदिर है।
यहां मिले सिक्कों से कई राजवंशों की जानकारी मिलती है। मल्हार में हुये उत्खनन से यहां मौर्य, सातवाहन, शरभपुरीय, सोमवंशी, एवं कल्चुरी राजवंश की संस्कृति की जानकारी प्राप्त हुयी है। मल्हार में डिडनेश्वरी देवी मंदिर, पातालेश्वर मंदिर, भीमाकीचक मंदिर ऐतिहासिक महत्व के मंदिर है।
मल्हार में भीमाकीचक मंदिर एतिहासिक महत्व का प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर एक टीले के रूप में था। टिले के उत्खनन से यह मंदिर सामने आया है। मंदिर गर्भगृह एवं अंतराल में विभक्त है। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का शिखर पुरी तरह से नष्ट हो चुका है। मंदिर की सिर्फ सादी दिवारे ही शेष है। मंदिर की द्वार शाखा बेहद ही अलंकृत है।
यह द्वार शाखा तीन शाखों में विभक्त है। बाहर की शाखा में भारवाहक एवं उनके द्वारपालों प्रतिमा स्थापित है। मध्य की शाखा में भारवाहक के उपर नदी देवी गंगा यमुना की बेहद ही आकर्षक प्रतिमायें स्थापित है। अंत की प्रमुख द्वार शाखा में शिव पार्वती , ब्रहमा, कार्तिकेय एवं शिव के गणों की विभिन्न मुद्राओं की आकर्षक प्रतिमायें खुदी हुयी है। इन सभी दृश्यों के चारों तरफ आकर्षक सुंदर पुष्पलताओं का अंकन किया गया है।
यह द्वार शाखा तीन शाखों में विभक्त है। बाहर की शाखा में भारवाहक एवं उनके द्वारपालों प्रतिमा स्थापित है। मध्य की शाखा में भारवाहक के उपर नदी देवी गंगा यमुना की बेहद ही आकर्षक प्रतिमायें स्थापित है। अंत की प्रमुख द्वार शाखा में शिव पार्वती , ब्रहमा, कार्तिकेय एवं शिव के गणों की विभिन्न मुद्राओं की आकर्षक प्रतिमायें खुदी हुयी है। इन सभी दृश्यों के चारों तरफ आकर्षक सुंदर पुष्पलताओं का अंकन किया गया है।
मंदिर के बाहर दो विशाल प्रतिमायें है जिसे स्थानीय लोग भीमा और कीचक के नाम से जानते है जिसके कारण यह मंदिर भीमाकीचक मंदिर के नाम से ही प्रसिद्ध हो गया है। इतिहासकारों ने इस मंदिर को 7 वी से 8 वी सदी के मध्य में निर्मित माना है।
-- ओम सोनी
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