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Showing posts from February, 2018

खारवेल युगीन विद्याधरधिवास बस्तर

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खारवेल युगीन विद्याधरधिवास बस्तर......! अशोक मौर्य की मृत्यु के पश्चात मौर्य साम्राज्य की जड़े कमजोर होती चली गयी। बाद के मौर्य शासकों के कमजोर होने के फलस्वरूप कलिंग ने मौर्यों की अधीनता से स्वयं को स्वतंत्र कर लिया। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कलिंग में महामेधवाहन वंश का उदय हुआ। इस वंश का तृतीय राजा खारवेल हुआ जो कि भारत के प्रतापी राजाओं में से एक था। खारवेल ने कलिंग में अपना शासन स्थापित किया। शीघ्र ही यह बहुत बड़े भू-भाग का स्वामी बन गया। आधुनिक बस्तर तदयुगीन आटविक क्षेत्र का कुछ भू भाग खारवेल के अधीन हो गया था। खारवेल की जानकारी हमे उदयगिरी की हाथीगुंफा प्रशस्ति से मिलती है। 17 पंक्तियों में खुदे हुये इस लेख से हमे खारवेल की महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती है। इस प्रशस्ति को कुछ इतिहासकार प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व एवं कुछ इतिहासकार द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व मानते है।  इस शिलालेख के अनुसार खारवेल ने जैन धर्म को बढ़ावा दिया था। इतिहासकारों में खारवेल के राज्यारोहण की तिथी में मत भिन्नता है। कहीं राज्यरोहण की तिथी 182 ई पूर्व एवं कहीं पर यह 159 ई पूर्व मानी गयी है। 24 वर्ष की उ...

गनमन तालाब का शिव मंदिर, बारसूर

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गनमन तालाब का शिव मंदिर, बारसूर बारसूर के भूले बिसरे मंदिर ! बारसूर आज का बसा कोई आम नगर नही है . यह तो सदियों पुराना शहर है. प्राचीनकाल में इस बारसूर को बाणासुर की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था . विभिन्न राजवंशो के शासको ने यथा गंगवंशीय ,नागवंशियों ने इसे अपनी राजधानी बना कर सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक रूप से सवारा है. एक अनुमान के मुताबिक बारसूर में 147 छोटे बड़े मंदिर हुआ करते थे और साथ ही इतने ही तालाब . किन्तु समय की मार के कारन बमुश्किल 7 से 8 मंदिर एवं इतने ही तालाब शेष रह गए है . कुछ प्रयासों से गणेश मंदिर , मामा भांजा मंदिर और बत्तीसा मंदिर आज फिर से आस्था के केंद्र बन चुके है. किन्तु आज भी बारसूर में ऐसे कुछ मंदिर और उनके अवशेष फिर से अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त करने के लिए जीर्णोद्धार की बाँट जोह रहे है . उनमे से गनमन तालाब का शिव मंदिर प्रमुख है. बहुत कम लोगो को ज्ञात है की गणेश मंदिर के पीछे की तरफ लगभग 200 मीटर की दुरी पर घनी झाड़ियो से घिरे हुए तालाब के मध्य एक शिव मंदिर स्थित है . वर्तमान में इस तालाब को गनमन तालाब के नाम से जाना जाता है . नागवंशी शासको द्वारा तालाब के बीच...

बस्तर के लोकगीत

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बस्तर के लोकगीतो में प्रेमसंदेश   *************************************** बस्तर में लोक गीतो का बडा ही महत्व हैं. लोक गीतो के मामले में बस्तर का आदिवासी समाज बडा ही सम्पन्न हैं. बस्तर में हर अवसर पर यहां के ग्रामीण गाते हैं. शुभकार्यो के अवसर पर , मेले मड़ई में , मृत्यु में , या किसी तीज त्योहारो के समय पर ये गाकर अपनी भावनाये प्रकट करते हैं. बस्तर के ह्ल्बी भतरी गोंडी सभी बोली में लोकगीतो का महत्वपूर्ण स्थान हैं. हर कार्य के पीछे लोक गीत जुडे हैं. बस्तर में लोकगीतो के  माध्यम से बहुत सारी बाते बडी ही आसानी से कह दी जाती हैं. जब बात प्रेमसंबंधो की आती हैं तो उसमें भी लोकगीतो का बहुत ही सुन्दर तरिके से प्रयोग होता हैं. नायक अपनी नायिका को छेडने के लिये , बेहद ही सुन्दर तरिके से , लोक गीतो की पंक्तियो के माध्यम से अपने मन की बात कहता हैं. बस्तर की ह्ल्बी बोली में ऐसे प्रणय निवेदन के लिये एक छोटा सा लोक गीत हैं - " रांडी चो बेटी , बाट चो खेती , कनक चुडी धान ! बाना पाटा के ओछा नोनी, खिंडिक रहो ठान !" मतलब - ओ विधवा की बेटी , ओ , जन पथ की खेती सी , धान की फसल सी तरूणी! ओ श्रमिके , ...

माड़िया और सृष्टि की उत्पत्ति

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माड़िया और सृष्टि की उत्पत्ति !! आप सभी माने या नहीं माने , सृष्टि की उत्पत्ति बस्तर में ही हुई है. माड़िया लोगो में प्रचलित गोत्र कथा के अनुसार पालनार गांव में ही सृष्टी की उत्पत्ति हुई है . उस कथा के अनुसार पहले जब पृथ्वी नहीं थी तब चारो तरफ जल ही जल था और चारो तरफ सन्नाटा पसरा था . तब उस समय में वहाँ एक तुम्बा तैर रहा था , उस तुम्बे में माड़िया कुटुम्ब का आदी पुरूष ड्ढडे बुरका अपनी पत्नी के साथ बैठा हुआ था. बायसन होर्न माडिया इतने में वहाँ भीमादेव प्रकट हुआ. भीमादेव प्रकट होते ही पानी पर हल चलाने लगा , जहां जहां हल चला वहाँ की धरती ऊपर आ गयी और शेष भाग में आज भी पानी है . जहां भूमि ऊबड खाबड हुई वहाँ पहाड बन गए . भूमि देखकर ड्ढडे बुरका अपनी पत्नी के साथ तुम्बे से नीचे उतरा और भीमादेव को अपना इष्ट मानकर अपना गृहस्थ जीवन प्रारम्भ किया . उसके दस पुत्र और पुत्री हुए . और बाद में उनके कई गोत्र चले . संसार के समस्त प्राणी ड्ढडे बुरका के ही वंशज है , ऐसी माडियो की मान्यता है . माड़िया दो प्रकार के होते है - अबुझ माडिया और दंडामी माडिये . दंडामी माडियो को बायसन होर्न माडिया भी कहा जाता है . य़े म...

विराने में, विराजित ब्रम्हा विष्णु महेश

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विराने में, विराजित ब्रम्हा विष्णु महेश  तत्कालीन चक्रकोट में छिंदक नागवंशी राजाओ ने बस्तर के कई स्थलों को अपने गढ़ों के रूप में विकसित किया था। इन गढ़ो की संख्या 84 से भी अधिक मानी गयी है। लगभग आज हजार साल बाद उन सामरिक गढ़ो के सिर्फ अवशेष ही प्राप्त होते है। अधिकांश गढ़ प्राकृतिक रूप से सुरक्षित है। ऐसा ही एक प्रमुख गढ़ था मिरतुर जो कि बीजापुर जिले के अंतर्गत बैलाडिला पहाडियो मे बसा एक छोटा सा गांव है।  ब्रम्हा, विष्णु और महेश उन छिंदक नागवंशी शासकों ने लगभग प्रत्येक गढ़ो में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था। उन मंदिरों में देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमायें स्थापित रहती थी। समय के कालचक्र में वे मंदिर विभिन्न कारणों से नष्ट होते गये और धन की कमी के कारण वे मंदिर पुनः जीर्णोद्धारित नहीं हो पाये। उन मंदिरों के अवशेष बिखरते गये और सिर्फ बची रही गयी मंदिर की प्रतिमाये। उन प्रतिमाओं में से अधिकांश प्रतिमायें चोरी होती गयी। कुछ प्रतिमायें गांववासियों के देवस्थल होने के कारण सुरक्षित बची रह गयी।  आज बस्तर में अधिकांशत देवगुड़ियों में गणेश या शाक्त प्रतिमायें ही प्राप्त होती है। मिरतुर...