खारवेल युगीन विद्याधरधिवास बस्तर
खारवेल युगीन विद्याधरधिवास बस्तर......! अशोक मौर्य की मृत्यु के पश्चात मौर्य साम्राज्य की जड़े कमजोर होती चली गयी। बाद के मौर्य शासकों के कमजोर होने के फलस्वरूप कलिंग ने मौर्यों की अधीनता से स्वयं को स्वतंत्र कर लिया। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कलिंग में महामेधवाहन वंश का उदय हुआ। इस वंश का तृतीय राजा खारवेल हुआ जो कि भारत के प्रतापी राजाओं में से एक था। खारवेल ने कलिंग में अपना शासन स्थापित किया। शीघ्र ही यह बहुत बड़े भू-भाग का स्वामी बन गया। आधुनिक बस्तर तदयुगीन आटविक क्षेत्र का कुछ भू भाग खारवेल के अधीन हो गया था। खारवेल की जानकारी हमे उदयगिरी की हाथीगुंफा प्रशस्ति से मिलती है। 17 पंक्तियों में खुदे हुये इस लेख से हमे खारवेल की महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती है। इस प्रशस्ति को कुछ इतिहासकार प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व एवं कुछ इतिहासकार द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व मानते है। इस शिलालेख के अनुसार खारवेल ने जैन धर्म को बढ़ावा दिया था। इतिहासकारों में खारवेल के राज्यारोहण की तिथी में मत भिन्नता है। कहीं राज्यरोहण की तिथी 182 ई पूर्व एवं कहीं पर यह 159 ई पूर्व मानी गयी है। 24 वर्ष की उ...