भांड देवल मन्दिर, आरंग

भांड देवल मन्दिर, आरंग

आरंग रायपुर जिले के अंतर्गत जैन धर्म के अनुयायियों का प्रमुख स्थल है। आरंग में जैन प्रतिमाआें के अलावा गुप्त कालीन मुद्राये , राजर्षितुल्य कुल वंश , शरभपुरीय तथा कलचुरी शासकों के अनेक अभिलेख प्राप्त हुए है। आरंग में लगभग प्रत्येक मोहल्ले में प्राचीन प्रतिमायें एवं मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े हुये है।  


आरंग का भांड देवल मन्दिर छत्तीसगढ़ में जैन धर्म का सबसे प्रमुख एवं सुरक्षित मंदिर है। आरंग रायपुर से महासमुंद रोड में 36 किलोमीटर की दुरी पर स्थित बेहद ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। आरंग महाभारतकालीन राजा मोरध्वज की नगरी मानी गयी है। 

आरंग नाम पड़ने के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने अपने सिंह के भोजन के लिये हैहयवंशी राजा मोरध्वज से अपने पुत्र को आरे से काट कर देने की मांग की थी।, महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद कृष्ण अपने भक्त मोरध्वज की परीक्षा लेना चाहते थे। उन्होंने अर्जुन से शर्त लगाई थी कि उनका उससे भी बड़ा कोई भक्त है। 


राजा मोरध्वज किसी को भी अपने निवास से खाली हाथ नहीं जाने देते थे। कृष्ण ने ऋषि का वेश एवं अर्जुन ने सिंह का रूप धारण किया।  दोनो राजा मोरध्वज के पास पहुंचे और ऋषि ने राजा से कहा, ‘मेरा शेर भूखा है और वह मनुष्य का ही मांस खाता है।’ इस पर राजा अपना मांस देने को तैयार हो गए तब कृष्ण ने दूसरी शर्त रखी कि सिर्फ किसी बच्चे का मांस चाहिए। राजा ने तुरंत अपने बेटे का मांस देने की पेशकश की। 


कृष्ण ने कहा, ‘आप दोनों पति-पत्नी अपने पुत्र का सिर काटकर मांस खिलाओ, मगर इस बीच आपकी आंखों में आंसू नहीं दिखना चाहिए।’ राजा और रानी ने अपने बेटे का सिर काटकर शेर के आगे डाल दिया। तब कृष्ण ने राजा मोरध्वज को अपने अवतार में आकर आशीर्वाद दिया जिससे उसका बेटा फिर से जिंदा हो गया। यहां के निवासियो के अनुसार यह घटना इसी गांव में घटित हुयी थी। 


आरा और अंग इन दो शब्दो से इस स्थान के नाम की उत्पत्ति मानी जाती है। उसी परम्परा के अनुसार तब से अब तक इस गांव में आरे का उपयोग नहीं किया जाता है।

यह आरंग एक समय जैन धर्म का महत्वपूर्ण केन्द्र था। इस गांव में 9 सदी का प्राचीन मंदिर स्थित है। जो कि जैन धर्म का समर्पित है। यह मंदिर भांड देवल के नाम से लोकप्रिय है। भांड देवल मन्दिर एक ऊँची जगती पर बना है। मंदिर पश्चिमाभिमुखी है। मंदिर ताराकृति में पंचरथ और भूमिज शैली में बना हुआ है।


 मंदिर का मंडप पुरी तरह से नष्ट हो गया है। मंदिर का गर्भगृह जगती से तीन सीढ़िया नीचे है। गर्भगृह में जैन तीर्थंकरों की काले प्रस्तर की तीन स्थानक प्रतिमायें स्थापित है। ये प्रतिमायें भगवान शांतिनाथ, श्रेयांसनाथ एवं अनंतनाथ की है। इन प्रतिमाओं के दोनो ओर चंवरधारी पुरूष एवं द्वारपालों का अंकन है। 

मंदिर की बाहरी दीवारों पर नृत्यरत अप्सराओं, यक्ष, यक्षी, मिथुन प्रतिमायें, मृदंग , ढोल बजाते हुये स्त्री पुरूष आदि विविध अलंकृत प्रतिमायें जड़ी हुयी है। मंदिर का शिखर भूमिज शैली का है जिस पर गवाक्षों का अंकन है। शिखर एवं मंदिर का परवर्ती काल में जीर्णोद्धार हुआ है।


 इतिहासकारों ने मंदिर का निर्माण9 वी सदी में माना है। इसके अलावा आरंग में बाघदेवल, महामाया मंदिर , प्राचीन जैन एवं अन्य प्रतिमायें तथा किले के अवशेष बिखरे पड़े है। 

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