बस्तर की पहचान - तूम्बा

बस्तर में प्रकृति का दिया अनमोल उपहार - तुम्बा



बस्तर में आदिवासियो के जीवन में प्रकृति का बेहद महत्वपूर्ण योगदान है ,यूँ कहै की प्रकृति की दी हुए चीजो के बिना घने जंगलो में जीना बिलकुल भी आसान नहीं है. पहले आदिवासियो के खाना पीेना , रहना , जीवन में उपयोगी वस्तुये सब जंगलो से ही प्राप्त होता रहा है. आज मनुष्य ने बहुत तरक्की कर ली है ज़िससे रोजमर्रा की वस्तुओ के लिये ,वह अब प्रकृति पर ज्यादा निर्भर नहीं है.  अब दैनिक उपयोगी वस्तुये  स्टील , प्लास्टिक से ही बनने लगी है.


बस्तर की आदिम संस्कृति में आदिवासियो के जीवन जीने के तौर तरीको में आज भी बाहरी दुनिया में एक अजीब सा आकर्षण है. इनकी दैनिक उपयोगी वस्तुये आज भी प्रकृति प्रदत्त है. इनके दैनिक उपयोगी वस्तुये भी आज भी शहरी लोगो के लिये कौतुहल का विषय है. यहां आदिवासियो को भगवान ने गजब की शक्ति दी है ज़िसके कारण ये प्रकृति की हर चीज का सही उपयोग कर पाते है.


आदिवासियो में दैनिक उपयोग की एक महत्वपूर्ण वस्तु है ज़िसे यहां स्थानीय बोली में तुम्बा या बोरका कहा जाता है. बोरका प्रकृति के द्वारा दिया गया सबसे महत्वपूर्ण उपयोगी वस्तु है. बोरका उस फल से बना है ज़िसे हम सब सब्जी के रूप में खाते है और हर जगह आसानी से उपलब्ध होती है वह है लौकी. जी हां यह लौकी है ज़िससे बोरका बनाया जाता है.
बोरका बनाने के लिये सबसे गोल मटोल लौकी को चुना जाता है ज़िसका आकार लगभग सुराही की तरह हो. ज़िसमे पेट गोल एवं बडा अौर मुंह वाला हिस्सा लम्बा पतला गर्दन युक्त हो. यह लौकी देशी होती है. हायब्रीड लौकी से बोरका नहीं बन पाता है. उस लौकी में एक छोटा सा छिद्र किया जाता है फिर उसको आग में तपाकर उसके अन्दर का सारा गुदा छिद्र से बाहर निकाल लिया जाता है.


लौकी का बस मोटा बाहरी आवरण ही शेष रहता है. आग में तपाने के कारण लौकी का बाहरी आवरण कठोर हो जाता है. उसमे दो चार दिनो तक पानी भरकर रखा जाता है ज़िससे वह अन्दर से पुरी तरह से स्वच्छ हो जाता है. यह बोरका बनाने का यह काम सिर्फ ठंड के मौसम में किया जाता है. ज़िससे बोरका बनाते समय लौकी की फटने की संभावना कम रहती है.
बोरका में रखा पानी या अन्य कोई पेय पदार्थ सल्फी , छिन्दरस , पेज आदि में वातावरण का प्रभाव नहीं पड़ता है. यदि उसमे सुबह ठंडा पानी डाला है तो वह पानी शाम तक वैसे ही ठंडा रहता है. उस पर तापमान का कौई फर्क नहीं पड़ता है और खाने वाले पेय को अौर भी स्वादिष्ट बना देता है.


बोरका के उपर चाकु या कील को गरम कर विभिन्न चित्र या ज्यामितिय आकृतियां भी बनायी जाती है. बोरका पर अधिकांशत पक्षियो का ही चित्रण किया जाता है. आखेट में रूचि होने के कारण तीर धनुष की आकृति भी बनायी जाती है.
पहले आदिवासियो के पास पानी या किसी पेय पदार्थ को रखने के लिये कोई बोतल या थर्मस नहीं होता था तब खेतो में या बाहर या जंगलो में पानी को साथ में रखने के लिये बोरका का ही सहारा था. अब आधुनिक बोतलो ने बोरका का स्थान ले लिया है ज़िससे अब यह परम्परागत , प्रकृति प्रदत्त बोरका का उपयोग कम होता जा रहा है.
.....ओम सोनी

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