बस्तरिया ईमली

बस्तरिया ईमली......!

बस्तर के आदिवासियों के आय का सबसे प्रमुख श्रोत वनोपज ही है। वनों से खाद्य एवं दैनिक उपयोगी में जरूरी चीजे वनोपज के रूप में बहुतायत में प्राप्त होती है। महुआ, तेंदुपत्ता, लाख, चार, टोरा, ईमली आदि वनोपज को ग्रामीण एकत्रित कर बाजारो में बेचने के लिये लाते है जिससे उन्हे अच्छी खासी आमदनी हो जाती है।


आज हम बात करते है ईमली की। ईमली का नाम सुनते ही कईयों के मुंह में पानी आ गया होगा। खटटी खटटी मीठी मीठी ईमली किसे अच्छी नहीं लगती है। बस्तर में ईमली का जबरदस्त पैदावार होती है। यहां घने जंगलो में इमली के लाखों पेड़ है जिनसे प्राप्त ईमली पुरे देश दुनिया में भेजी जाती है। बस्तर की जलवायु ईमली के लिये फायदेमंद है जिसके कारण हर साल टनों ईमली का उत्पादन एवं व्यापार बस्तर में होता है।


अपने रिकार्ड पैदावार के कारण बस्तर का जगदलपुर एशिया का सबसे बड़ी ईमली मंडी के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण अपने गांवों में ईमली के पेड़ों को विशेष संरक्षण करते है। गर्मी के शुरूआती दिनों में इमली की आवक चालू हो जाती है। आसपास के गांवो में लगने वाले हाट बाजारो में ग्रामीण टोकने या बोरो में भर भरकर ईमली बेचने के लिये आते है। यहां पर गल्ला व्यापारी होते है जो इन ग्रामीणों से उचित मूल्य पर ईमली खरीदते है। ये गल्ला व्यापारी फिर आगे दुसरे व्यापारियों को ईमली बेचते है।


जगदलपुर में सारे संभाग की ईमली एकत्रित होती है फिर यहां से दक्षिण एवं उत्तर भारत के राज्यो में इमली की सप्लाई होती है। वहां से फिर पाकिस्तान , श्रीलंका, मलेशिया, वियतनाम जैसे देशो में यहां की ईमली निर्यात की जाती है। बस्तर की ईमली की गुणवत्ता बेहद अच्छी होने के कारण विदेशो मे इसकी बहुत मांग है।
इमली का उपयोग एवं इसके गुण तो आप सभी जानते ही है। अच्छी गुणवत्ता की ईमली से कैंडी भी बनती है। बस्तर की ईमली आकार में बड़ी और भूरे रंग , गुदेदार एवं चटपटी स्वाद के कारण बेहद ही लोकप्रिय है।

Comments

Popular posts from this blog

कंघी

कर्णेश्वर मंदिर सिहावा

सातधार जलप्रपात Satdhar Watefall Barsur