बस्तर की प्राचीन तोप बनी ओडिसा की बांडाबाघ ठकुरानी देवी

बस्तर की प्राचीन तोप बनी ओडिसा की बांडाबाघ ठकुरानी देवी.......!


रियासतकाल में बस्तर और पड़ोसी राज्य जैपोर दोनो के संबंध में कई उतार चढ़ाव आते रहे है। दोनो कभी एक हो जाते तो कभी दोनो एक दुसरे के परम शत्रु। इन दोनो राज्यों में कई बार युद्ध हुये है जिसमें दोनो की हार जीत होती रही है।  हार जीत में एक दुसरे के बहुमूल्य वस्तुओं की लूटकर ले जाने की परंपरा बेहद ही प्राचीन है।

बस्तर और जैपोर राज्य के मध्य ऐसे ही एक युद्ध होने की दंतकथा मिलती है। इस युद्ध में विजयी राज्य जैपोर ने बस्तर की दो तोपों को विजय प्रतीक के रूप में अपने साथ ले गये थे। ये तोप आज देवी के रूप में पूजी जा रही है। श्रद्धा महत्वपूर्ण होती है, ना कि ,पूजी जानी वाली प्रतिमा या अन्य कोई प्रतीक। लोहे की प्राचीन तोप को देवी के रूप में पूजे जाने के कारण यह बात अक्षरशः सिद्ध हो जाती है। 


जैपोर राजमहल के सामने बांडाबाघ ठकुरानी देवी का मंदिर है। सामान्यतः मंदिर में प्रतिमा, फोटो को प्रतीक मानकर पूजा की जाती है। परन्तु इस ठकुरानी देवी के मंदिर में प्रतिमा के बजाय लौहे की प्राचीन तोप को देवी मानकर पूजा की जाती है। स्थानीय लोग तोप को बांडाबाघ ठकुरानी देवी के नाम से पूजा करते है। 


यहां इस प्राचीन तोप के संबंध में एक दंतकथा मिलती है। दंतकथा के अनुसार लगभग 500 साल पहले जैपोर के राजा ने बस्तर पर आक्रमण किया था। बस्तर राजा की युद्ध में हार हुई थी। जैपोर के राजा ने बस्तर राजा की दो तोप जय गोपाल और बांडाबाघ को विजय प्रतीक के रूप में अपने साथ ले गये। रास्ते में जयगोपाल तोप का पहिया टूट गया , अत्यंत वजनदार होने के कारण उस तोप को सैनिको ने जैपोर के मुरूल्ल पहाड़ पर ही छोड़ दिया और दुसरी तोप बांडाबाघ को जैपोर के राजमहल के सामने रख दिया। हालांकि किस राजा के समय ये तोपें बस्तर से लायी गई थी उन्हे इसकी कोई जानकारी नहीं है।

एतिहासिक महत्व की इस तोप को स्थानीय निवासी देवी के रूप में पूजते है। बांडाबाघ ठकुरानी देवी , इस नाम में तोप के नाम के साथ देवी का नाम भी जुड़ा हुआ है।

बस्तर में ऐसा कभी कोई युद्ध हुआ हो जिसमें ये तोपे जैपोर ले जायी गई हो, ऐसी कोई जानकारी यहां के इतिहास में उपलब्ध नहीं है। ना ही अभी तक जयगोपाल तोप को खोजने की कोई कोशिश कभी की गई है।  

लेख - ओम सोनी
फोटो - बसंत कुमार मिश्रा के सौजन्य से। 
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