दीमक की बांबी

बुढ़ादेव के रूप में पूजी जाती है दीमक की बांबी.......!


दीमक की बांबियों के बारे में हम सभी जानते है। लेकिन बहुत कम लोगों ने 10 फिट की उंचाई वाले दीमक की बांबियों को देखा होगा। बस्तर के जंगलों में दीमक की बड़ी बड़ी बांबियां आज भी देखने को मिलती है। कुछ बस्तियों के आसपास भी ऐसी बड़ी बांबिया आज भी दिखाई पड़ती है। यहां के आदिवासी प्रकृति पूजक है। इसका प्रमाण उनके विभिन्न धार्मिक उत्सवों में देखने को मिलता है। 

अपनी श्रद्धा के कारण दीमक की बांबी को भी देव मानकर पूजा की जाती है। यहां के जनजातीय समाज में इन दीमक की बांबियों के बुढ़ादेव मानकर पूजा की जाती है। ग्रामीण इनकी पुरी सुरक्षा करते है। इनके इस धार्मिक विश्वास के कारण इन बांबियों में रहने वाले नाग सर्पो की सुरक्षा होती है। यहां के स्थानीय भाषा में इन बांबियों को डेंगुर कहा जाता है। इन बांबियों को बुढ़ादेव का निवास अर्थात भगवान शिव का घर माना जाता है। हरियाली अमावस्या एवं नवाखानी में इन बांबियों की पूजा की जाती है। यहां दुध चढ़ाया जाता है। ग्रामीण इन बांबियों की सुरक्षा कर नाग देवता को बचाते है। नाग कई आदिवासियों का गोत्र भी है। इसलिये अपने गोत्रदेवता की सुरक्षा के लिये बांबियों की रक्षा करते है।  बेहद पवित्र मानने के कारण इन्हे कभी तोड़ा नहीं जाता है। 
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