छेरीगुडा

छेरीगुडा .....!
दोस्तो बस्तर मे लगभग सभी आदिवासी पशुपालक है. गरीब से गरीब आदिवासी के यहां 10 - 20 जानवर तो होते ही है. सम्पन्न लोगो के पास तीन सौ तक जानवर होते हैं. जानवरो मे गाय ,बैल , भैंस बकरी प्रमुखत: से पाले ज़ाते हैं. जानवरो से दूध नही निकाला जाता है। इनका उपयोग सिर्फ कृषि कार्य मे या मांस प्राप्त करने मे होता है।
घरो के सामने ही खुले आसमान के तले य़ा फिर खुले कमरे मे जानवरो को बांधा जाता है। बकरिया भी घरो मे ऐसे ही खुले मे बांधी जाती है।

मैने सुदुर दक्षिण बस्तर मे बकरियो को बांधने का एक प्राचीन तरिका देखा. सामान्यत: लगभग बस्तर अौर अन्य सभी जगह मे बकरिया खुले मे ही बांधी जाती है। परंतु यहां दक्षिण बस्तर मे बकरियो को बांधने के लिए लकड़ीयो का एक छोटा सा घर बनाया जाता है। इन्हे छेरीगुडा कहते है.
लकडियो के बीच मे खाली जगह रहती है ताकि पर्याप्त रोशनी एवं हवा मिलती रहे. छत को घासफुस से ढक दिया जाता है। इस छेरी गुडा को जमीन से एक फीट उपर रखा जाता है। ताकि बरसात मे अन्दर पानी ना घूसे.
छेरीगुडा घर के सामने ही रखते है. इसमे बकरिय़ां हिंसक जानवरो से सुरक्षित रहती हैं. घर मे इनकी बदबू भी नही आती है. ये पुरातन पद्धति लगभग अब विलुप्त हो गई है. बस माड़ के कुछ गांवो मे बची है.

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