चार (चिरौंजी) के पेड़
तेजी से कम हो रहे है, चार (चिरौंजी) के पेड़ ......!
बस्तर में एक समय में चार के पेड बहुतायत में पाये जाते थे। किंतु अब धीरे धीरे इन पेड़ो की संख्या कम होती जा रही है। दरअसल यहां के स्थानीय लोग इन पेडो से चार के फल तोडने के लिये पुरे वृक्ष को ही काट देते है। अंधाधुंध वृक्षो की कटाई भी प्रमुख कारण है।
चार के पेड़ पर गोल और काले कत्थई रंग का एक फल लगता है। यह फल पकने पर मीठा और स्वादिष्ट होता है और उसके अन्दर से बीज प्राप्त होता है। बीज या गुठली का बाहरी आवरण मजबूत होता है। इसे तोड़कर उसकी मींगी निकलते है। यह मींगी ही चिरौंजी कहलाती है और एक सूखे मेवे की तरह इस्तेमाल की जाती है। चिरौंजी के अतिरिक्त, इस पेड़ की जड़ों , फल , पत्तियां और गोंद का भारत में विभिन्न औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। चिरौंजी का उपयोग कई भारतीय मिठाई बनाने में एक सामग्री की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
चिरौंजी एक बेहद ही महंगा मेवा है। एक समय ऐसा था कि बस्तर में आदिवासी पहले नमक के बदले चिरौंजी देते थे। नमक के भाव में चिरौंजी का मोल था। अब स्थिति बदल गयी है। बस्तर में जगदलपुर का टाकरागुड़ा ऐसा स्थान है जहां के 500 एकड़ के जंगल में 80 प्रतिशत चार के पेड़ है। वहां के ग्रामीण चिरौंजी बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमाते है। स्व रोजगार के लिये चार के पेड़ों का संरक्षण बेहद आवश्यक है। शासन स्तर पर इसके प्रोत्साहन के लिये योजनायें बनाकर क्रियान्वयन किये जाने की आवश्यकता है।
Comments
Post a Comment