दंतेवाड़ा का कड़कनाथ
दंतेवाड़ा मे कड़कनाथ .....!
कड़कनाथ एक तरह से जंगली मूर्गे की प्रजाति है. देशी य़ा बायलर मूर्गे की अपेक्षा इसका मांस अधिक पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होता है। इस मूर्गे का सिर्फ रँग ही काला नही होता वरन इसका मांस , खुन भी काला ही होता है. दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार के लिए दंतेवाड़ा मे इसके संवर्धन की दिशा मे उल्लेखनीय कार्य किया है ज़िसकी ज़ितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है.
कड़क नाथ मूर्गे का मांस बाजार मे 700 रूपये प्रति किलो तक बिक रहा है. दंतेवाड़ा से हैदराबाद के बाजारो मे कड़कनाथ का मांस विक्रय करने की योजना की दिशा मे भी काम हो रहा है. कड़क नाथ के पालन से निश्चित तौर पर दंतेवाड़ा के निवासियो के आर्थिक उन्नति के द्वार खुल गये है.
अभी कुछ दिनो पूर्व ही छत्तीसगढ़ (दंतेवाड़ा )ने कड़कनाथ मूर्गे की जीआई टैग ( भौगोलिक संकेतक ) के लिये दावा किया था. परंतु यह प्रजाति झाबुआ की होने के कारण कड़कनाथ का जीआई टैग मध्य प्रदेश (झाबुआ)को मिल गया.छत्तीसगढ़ (दंतेवाड़ा) का दावा कमजोर पड़ गया. दंतेवाड़ा मे कड़कनाथ की अधिक उत्पादन एवं संरक्षण के कारण जीआई टैग की मांग की गई थी. यदि झाबुआ द्वारा कड़कनाथ के उत्पादन पर रॉयल्टी मांगने पर कड़कनाथ का नाम बदलने का तर्क जिला प्रशासन द्वारा दिया जा रहा है.
साथ ही अब जँगल मे कड़कनाथ मुर्गो को छोड़ने की दिशा मे भी कदम उठाये जा रहे है. माना जाता है कि बस्तर के बारसुर के जंगलो मे कभी कड़कनाथ मूर्गा पाया जाता था किंतु संरक्षण के अभाव एवं शिकार के कारण यह प्रजाति विलुप्त हो गई. वैसे इस संभावना से इंकार भी नही किया जा सकता है क्योकि बस्तर मे अभी भी जंगली मूर्गे देखने को मिलते है. कुछ दिनो पूर्व एपिक चेनल मे कांकेर के राजवंश द्वारा कड़कनाथ मूर्गे की विस्तृत जानकारी दिखायी गई थी.
छतीसगढ़ (दंतेवाड़ा) को भले ही कड़कनाथ का जीआई टैग ना मिल पाया परंतु इसके उत्पादन एवं संरक्षण के कारण यहां के निवासियो को स्वरोजगार मिला जिसके लिये निश्चित तौर पर जिला प्रशासन बधाई का पात्र है.
यह लेख कापी पेस्ट करके अपने पेज य़ा वाल पर ना पोस्ट करे , इसे अधिकाधिक शेयर करे.
Comments
Post a Comment