सूता
पुरानी पीढ़ी का पुराना गहना - सूता....!
चलो आज हम बात करते है गहनों की। गहने पहनना किसे अच्छा नहीं लगता। नर हो या नारी सभी गहने पहनना पसंद करते है। मनुष्य प्राचीन काल से आभूषण पहनने का शौकिन रहा है। अपने शरीर के हर अंगो को आभूषणों से अलंकृत करता आया है। गहने पहनने के मामले में पुरूषों की अपेक्षा महिलायें अधिक भाग्यशाली एवं आगे है। आभूषण महिलाओं के श्रृंगार है। नारी के सोलह श्रृंगार आभूषणों के बगैर पुरे नहीं होते है। शरीर के प्रत्येक अंग के लिये अलग अलग गहने होते है। सोने, चांदी, तांबे , पीतल एवं रत्न हीरे मोती जड़ित आभूषणों की लंबी श्रृंखला है जो कि सर्वप्रिय है। वैसे गले में हार, कंठाहर , मोतीहार, सिक्को की माला जैसे कई गहने पहने जाते है और प्राचीन प्रतिमाओं में भी गहनों का अंकन दिखाई देता है। गले में वैसे सोने के हार ही ज्यादा पहने जाते है परन्तु गले के कुछ गहने चांदी के ही अच्छे लगते है जैसे सूता। आज हम बात करते है गले का आभूषण सूता की।
बस्तर अंचल और छत्तीसगढ़ क्षेत्र में अधिकांशत पुरानी पीढ़ी की महिलाओं के गले में सूता पहना हुआ दिखाई पड़ता है। बस्तर अंचल में सूता बहुत पहले से प्रचलन में रहा है। ढोकरा कला में बनी स्त्री प्रतिमाओ में आप सूता का अंकन जरूर देखेंगे। यह चांदी का ठोस एवं गोलाकार होता है। जिसे सिर्फ गले में ही पहना जाता है। यह लगभग 250 ग्राम से 500 ग्राम तक या उससे भी अधिक वजनी होता है। चांदी के अलावा गिलट का भी बनाया जाता है। इसके सिरो के हुक की तरह बनाया जाता है जिसे यह मजबूती से आपस में बंधा रहता है। इस प्रकार के वजनी सूता पहनने का कारण चांदी के ठोस गहने के प्रति लगाव होता है। आर्थिक मुसीबत के समय में इन बेचकर अधिक धन भी प्राप्त किया जा सकता है। अब तो धीरे धीरे सूता भी चलन से बाहर होता जा रहा है। सिर्फ पुरानी पीढ़ी की बुढ़ी महिलाओं के गले में ही अब सुता दिखाई देता है। अब तो सूता भी बीते दिनों की बात सी हो गई है कभी गले में महिलायें सूता पहना करती थी। हमने तो सूता के बारे में बता दिया कुछ तो आप भी बताईये सूता के बारे में, फोटो हो तो जरूर शेयर करें। फोटो बसंत कुमार मिश्रा जी के सौजन्य से।
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