केशकाल

घाटी केशकाल की ......!

दोस्तो आप मे से अधिकांश लोगो ने केशकाल घाटी का नाम सुना होगा , इस खतरनाक घाटी मे रोमांचक य़ात्रा की होगी , बस उन्ही स्मृतियो को पुन जीवंत करने के लिये आज मैं आपको केशकाल घाटी से जुड़े अपने अनुभवो से रूबरू कराता हूँ.
केशकाल घाटी दंडकारण्य के पठार पर चढ़ने का मुख्य प्रवेश द्वार है. यह घाटी चढ़कर ही हम बस्तर के पठारी भू भाग् पर आवागमन कर सकते है. इस घाटी का इतिहास काफी पुराना है. इस घाटी ने बस्तर के नाग चालुक्य राज्य पर कई आक्रमण असफल किये है. हिमालय की तरह इस घाटी पर्वत ने बस्तर की सुरक्षा की है. इस घाटी ने बस्तर एवं कांकेर राज्य की सीमा निर्धारण का कार्य किया है. नाग राजा सोमेश्वर देव ने घाटी पार कर रतनपुर के कलचुरियो को अधीन कर लिया था. अन्नमदेव ने भी घाटी से आगे बढ़कर सिहावा तक बस्तर राज्य की पताका फहरा दी थी. कांकेर राजा से घाटी का निचला ग्राम दादरगढ भी अन्नमदेव ने उपहार मे प्राप्त किया था.



कहते है कि वर्तमान केशकाल मे कभी केशलू नाम का माहरा रहता था जिसके नाम पर ही यह गांव केशकाल एवं गांव से लगी घाटी केशकाल घाटी कहलायी. इस घाटी के नाम मे ही इसकी विशेषता छूपी हुई है. इस घाटी के मोड़ एवं गहरी खाईय़ा वाहनो को लील जाने के लिये हरदम तैयार रहती है. नजर हटी और दूर्घटना घटी, केश भर का ही अंतर रहता है काल के गाल मे समाने का. इसलिये तो यह केशकाल है.
इस घाटी मे तेलिन माता का भी मन्दिर है ज़िसके कारण यह तेलिन घाटी भी कहलाती है. मां के सम्मुख सिर झुकाकर हर य़ात्री अपनी मंगलमयी य़ात्रा की कामना करता है.
12 भांवर (मोड़ ) वाली इस घाटी मे सड़क मार्ग से आवागमन लगभग 120 वर्ष पूर्व प्रारम्भ माना जाता है। तब से आज तक उस संकरी घाटी की चौडाई की वृद्धी के लिये अनेको प्रयास हुए है. बार बार के होने वाले जाम से निजात पाने के लिये वर्तमान 2018 मे भी इसकी चौडाई का कार्य प्रगति पर है.यह घाटी अब लगभग बेहद चौड़ी एवं भयमुक्त घाटी बन गई है. यह घाटी बस्तर को छतीसगढ से जोड़ने वाली सड़क का सबसे मुख्य पड़ाव है. घाटी के मोड अत्यंत संकरे होने के कारण यहां अक्सर जाम लगता है. इसी जाम के कारण अधिकांश बस्तरियो को , राजधानी मे अपने महत्वपूर्ण काम संपन्न करने हेतु एक दिन पहले जाना पड़ता है।

यह घाटी भय , रोमांच , आध्यात्म के साथ साथ मन को प्रफुल्लित करने वाले दृश्यो का भी सुखद अहसास कराती है. इस घाटी से दिखने वाले बेहद खुबसुरत दृश्य किसी भी य़ात्री के भय को दुर कर मन में आनन्द का भाव संचार करते है. यह घाटी गुलमोहर के लाल फूलो की कालीन बिछाकर हर आगंतुक का इस्तकबाल करती है. घाटी से दिखने वाले दृश्यो मे दूर दूर तक पहाड़ो पर बिछी हरियाली , ऊपर आसमान की नीली छतरी , सुरज की सुनहरी किरणे ये सब मिलकर बस्तर की असीम खूबसुरती की झलक दिखलाते है. घाटी मे सदियों से विराजित ऊँचे वृक्ष हर राहगीर को शीतल छाया देकर उसकी थकान को हर लेते हैं. फागन के समय घाटी मे पलाश के दहकते पुष्प दूर से जलती हुई आग की लपटो के दृश्य दिखाते है. घाटी के छोटे छोटे झरने अपने मीठे शीतल जल से पथिको एवं जानवरो को तृप्त करते है. कभी शेरो की दहाड़ से यह पुरी घाटी दहल जाती थी आज उसी घाटी मे कानफोडू हार्न वहां की शांति को भंग करते है. घाटी के आसपास के जंगल के जानवर अब गाड़ियो के शोर सुनकर दूर भागते है.
यह घाटी रोमांच आध्य़ात्म एवं असीम खुबसुरती का अनूठा संगम स्थल है. हालांकि चौड़ीकरण के कारण इसकी खुबसुरती मे कमी आयी है. नये पौधो के बढने से यह फिर से हरी भरी हो जायेगी.

यह लेख केशकाल घाटी की मेरी बीसियो य़ात्रा मे से आज की य़ात्रा पर आपके समक्ष प्रस्तुत है. कापी पेस्ट ना करे , अधिक से अधिक शेयर करे.

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