बांस में खाना
बांस में पकाया जाता है खाना......!
आज हम सभी स्टील के बर्तनों मंे खाना पकाते है। अब भी कहीं कहीं पूर्व समय की तरह अब भी मिटटी के बर्तनों में खाना पकाते है। पूर्व में बर्तनों के अभाव होने के कारण जंगल में रहने वाले आदिवासी पत्तों में, जमीन खोदकर, या गर्म पत्थरों पर अपना खाना तैयार करते रहे है। खाना पकाने के लिये बांस का भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। खोखले मोटे बांस का इस्तेमाल खाना पकाने के बर्तन के रूप में किया जाता रहा है।
बस्तर एवं दुनिया के लगभग सभी जंगली क्षेत्रों में जहां बांस बहुतायत में पाये जाते है वहां बांस में खाना पकाने का यह तरीका प्रचलित रहा है। बस्तर के नारायणपुर के माड़ क्षेत्र एवं मध्य बस्तर के आसपास में इन खोखले बांसों में खाना पकाने की यह तरीका अब भी देखने को मिलता है। स्टील के बर्तनों की अपेक्षा मिटटी या अन्य प्राकृतिक वस्तुओं की मदद से पका खाना बेहद स्वादिष्ट होता है।
हरे खोखले मोटे बांस को पहचान कर उसे काट लिया जाता है। अधिकांशतः उपर से काट कर उसके अंदर पानी एवं चावल डालकर जलती हुई आग में खड़ा रख दिया जाता है। या बांस को आडा कर लंबाई से काट दिया जाता है। फिर उसमें चावल डालकर पकाया जाता है।
फिर बांस हरा होने के कारण जलता नहीं है। कुछ देर में खाना पककर तैयार हो जाता है। बस्तर में आदिम युग में खाना पकाने की यह पुरानी पद्धति अब भी चलन में है। प्रकृति प्रदत्त बांस में खाना पकाना अब भी बस्तर में प्रचलित है यह बेहद सुखद एवं आश्चर्यजनक बात है। मुझे चित्र तो नहीं मिले इसलिये प्रस्तुत चित्र नेट से लिये गये है।
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