बाऊंसी बांसुरी

हवा में लहराने वाली बाऊंसी बांसुरी....!


बांसुरी की कर्णप्रिय मधुर ध्वनि हर किसी का मन मोह लेती है। नजरे उस ध्वनि के श्रोत की ओर अनायास ही दौड़ पड़ती है। बरसात के दिनों में गाय चराने वाले चरवाहे जंगलों में जब बांसुरी बजाते है तब पुरा जंगल बांसुरी की मधुर ध्वनि से आनंदित हो जाता है। मेले में तो बंशी वाला ही आकर्षण का केन्द्र होता है। हर कोई बांसुरी की ध्वनि की तरफ खिंचता चला आता है। 



बस्तर अंचल में आदिवासियों के बीच नृत्य गीतों में अन्य वाद्यों के साथ.साथ कहीं.कहीं बांसुरी वादन भी परंपरा से चली आ रही है। विशेषकर धुरवा जाति में इसका प्रचलन अधिक है। परन्तु आवश्यकतानुसार सीमित स्वर बजाने का ही अभ्यास इन्हें रहता है। बस्तर में बांसुरी को बाऊंसी कहा जाताहै। यहां आदिवासी बांस के नाना प्रकार की उपयोगी एवं सजावटी वस्तुये बनाते है। उसमें से बांसुरी प्रमुख है। 

आप सभी ने देखा होगा कि आमतौर पर बांसुरी मुंह से ही बजाई जाती है ,कुछ नाक से बजाने वाली बांसुरी भी होती है। बस्तर में इनसे इतर एक विशेष तरह की बांसुरी देखने को मिलती है जिसे बजाने के लिये मुंह या नाक से हवा देने की जरूरत नहीं पड़ती है। यहां एक विशेष तरह की बांसुरी का चलन है जो कि बहुत कम देखने को मिलती है। इस बांसुरी को सिर्फ हवा में लहराने मात्र से मधुर संगीत निकलता है। 


यह बांसुरी बांस की लगभग ढाई से तीन फीट लंबी होती है, इसकी गोलाई 1 इंच व्यास की होती है। यह पुरी खोखली होती है। इसमें सामान्य बांसुरी की तरफ बाहरी तरफ कोई छिद्र नहीं होती है। एक तरफ  गोलाकार दो ब्लोअर लगाया जाता है एवं दुसरी तरफ खुली होती है।  हवा में लहराते समय ये ब्लोअर उपर वाले हिस्से में होती है जिसमें से हवा आने एवं निकलने के कारण संगीत निकलता है जिसकी ध्वनि बांसुरी के समान ही होती है। 

हवा में लहराने मात्र से इस बांसुरी से संगीत निकलने लगता है। इस बांसुरी की कीमत यहां सिर्फ 100 रू. है वहीं विदेशों में इस बांसुरी की कीमत 1000 रू. तक है। इटली स्वीडन फ्रांस जैसे देशों में इस बांसुरी की बहुत मांग है। यह बांसुरी आपको चित्रकोट जलप्रपात के पास मिल जायेगी। ....ओम सोनी दंतेवाड़ा। 

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