हल से खेती

हल से खेती अब दुर्लभ हो गई......!

हल वो औजार है जिससे खेती की जाती है। मनुष्य के विकास में कृषि का सबसे बड़ा योगदान रहा है। पहले कृषि कार्य बगैर हल के संभव नहीं था। हल के सहारे ही मानव सभ्यता विकसित हुई है। देखा जाये तो हल का महत्व बहुत अधिक है और हल सबसे पुराने औजारों में से एक है जो आज भी कृषि के लिये बेहद उपयोगी है। हल से खेत की जुताई की जाती है। मिटटी की परत को उपर नीचे किया जाता है जिससे बीजों के अंकुरण में पर्याप्त हवा एवं नमी बनी रहती है। भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का प्रमुख अस्त्र हल ही था। 

शनेः शनैः कृषि कार्य में तकनीकी उपकरणों के प्रयोग से हल का प्रयोग कम होता जा रहा है। हल का स्थान अब टै्रक्टर ने ले लिया है। टै्रक्टर के कारण कृषि कार्य में कम मेहनत में अच्छी तरह से खेत की जुताई कार्य हो जाती है। 

बस्तर में पहले कृषि को उतना महत्व नहीं दिया जाता था। वनोपज से आदिवासी अपना गुजारा करते थे। सिर्फ नाममात्र के लिये ही कृषि किया जाता है।  इसका कारण बस्तर की भौगोलिक स्थिति है, बस्तर में पठारो, नदियों एवं पहाड़ो के कारण समतल एवं कृषि योग्य भूमि का अभाव है। बस्तर में अब कृषि कार्य को अधिक महत्व दिया जा रहा है।  आदिवासी झुमिंग कृषि को अधिक महत्व देते है जिसमें से पेड़ो एवं छोटे पौधों को काटकर खेती योग्य जमीन तैयार की जाती है। उस जगह पर कुछ साल खेती करने के बाद फिर दुसरी जगह इसी तरह जमीन तैयार की जाती है।

 यहां भी खेती करने के लिये हल का ही उपयोग किया जाता रहा है। बैल, गाय एवं भैंसों पर ही नागर फांदकर कृषि कार्य किया जाता था। परन्तु बस्तर हाल के वर्षों में गांव -गांव में टै्रक्टर की सुलभता के कारण हल का प्रयोग बेहद ही कम हो गया है। टै्रक्टर से कम मेहनत में खेत की जुताई हो जाती है। हल से जुताई करने में भले ही लागत कम लगती है परन्तु समय एवं मेहनत अधिक लगने के कारण बस्तर के किसान हल के बजाय टै्रक्टर को अधिक महत्व देने लग गये है। 

बस्तर में अब मानसून आगमन के साथ ही खेतों में जुताई का कार्य बड़ी तेजी से चल रहा है। मैने देखा है कि लगभग सभी जगह टै्रक्टर से खेत की जुताई चल रही है, बेहद कम किसान हल का प्रयोग कर रहे है। कुछ किसानों के घर तो हल कोने में फेंके हुये पड़े है जैसे अब उनका कोई काम नहीं है। 

बड़ी मुश्किल से मुझे हल, हल बनाते हुये किसान, हल ले जाते हुये हलधर की तस्वीर खीचने का मौका मिला। हल चलाते हुये किसान मुझे अभी तक दिखाई नहीं दिये, कुछ अंदरूनी ग्रामों में शायद दिख जाये उसके लिये भोर होते ही जाना पड़ेगा। आने वाले कुछ सालों में बस्तर में आपको ना हल दिखाई देगा और ना ही हल चलाता हुआ कोई आदिवासी किसान, ये बात अब दुर की कौड़ी होने वाली है। ओम सोनी दंतेवाड़ा, अधिक से अधिक शेयर करे , कापी पेस्ट ना करें। 

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