रामी

रामी की मासूमियत....!

बस्तर में पक्षियों का संसार बहुत बड़ा है। भांति भांति के पक्षी बस्तर के आसमान में उड़ते रहते है। मनुष्य को आदिकाल से पक्षियों से विशेष लगाव रहा है। हमारी बचपन की कहानियां हो या पुराने शिल्पांकन , इन सभी में दो ही पक्षी ऐसे मिलते है , जिसे इंसान ने पिंजरे में कैद कर पाला है , एक तो है तोता और दुसरा मैना।
तोता और मैना दो ऐसी चिड़िया है जो इंसानो की बोली सीख जाती है। आज हम बात करते है मैना की। मैना की कई प्रजातियां है जो पुरे भारत में पायी जाती है। बस्तर में मैना की एक विशेष प्रजाति पहाड़ी मैना पायी जाती है जिसे छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी का गौरव प्राप्त है। मैना की दो जात ऐसी है जो इंसानी बस्ती के आस पास ही जीवन व्यतीत करती है ये है सिरोई मैना और देशी मैना।

इसमें से देशी मैना भी इंसानो की बोली की नकल करती है। आप सभी ने इसे अपने धरों के आसपास उड़ते देखा होगा। देशी मैना भुरे कत्थई रंग की होती है चोंच पीले रंग की और गले मे काली पटटी होती है और डैनों के किनारे सफेद रंग के होते है।
बस्तर में मैने इस देशी मैना को कई पिंजरों में कैद देखा है क्योंकि एक तो बड़ी आसानी से मिल जाती है और तोते की तरह ये भी दो चार मीठे बोल सीख जाती है। वे मीठे बोल ही इसे पिंजरो में कैद कर देते है। इसे स्थानीय भाषा में रामी चिड़िया कहते है। इस पक्षी को भी शौकिन लोग पिंजरे में पालते है यह पक्षी भी कुछ शब्द सीख जाता है मैने इसे बोलते हुये स्वयं देखा है।
शाम छः बजे मारडूम के पास यह बालक इस रामी चिड़िया को डंडे पर बैठाकर चला जा रहा था। इस रामी के चुजे के पुरे पंख अब ही निकले थे उड़ना सीख ही रही थी कि यह रामी इस शौकिन अबोध बालक के हत्थे चढ़ गई।
यह बालक रास्ते में चल रहा था, डंडे को छोडकर रामी कुछ दुर उड़ान भरती किन्तु कटे हुये पंख ज्यादा देर साथ नहीं देते और वह फिर जमीन पर आ गिरती। फिर वह लड़का उसे डंडे पर बैठा देता। यह नजारा मैने अपने आंखो से देखा।
इस लड़के ने एक घोसले से इस रामी को पकड़ा था लगभग 01 सप्ताह से वो इसे घुमा रहा था, दुसरे हाथ में पकड़े छिल्ली में रामी का खाना भी उसने इंतजाम कर रखा था।

मैने जब इन दोनो की तस्वीर ली थी यही भाव नजर आया कि बच्चा मासूम है, उसे चिड़िया पालने का शौक विरासत में मिला है, वो अभी पिंजरे में कैद पंछी के दर्द से वाकिफ नहीं है।
वहीं रामी मुझे बड़ी मासुमियत से देख रही थी जैसे वह मुझसे कह रही थी हाय रे मेरी किस्मत, घोसले से निकलते ही इस बच्चे के हाथ में आ पड़ी हुं, इसने मेरे पंख काट दिये है, खुले में रहती हूं , पिंजरे की मजूबत शलाखे भी नहीं है, ना जाने कब कौन बिल्ली या कुत्ता मुझे अपना भोजन बना ले , मेरे पंख मुझे लौटा दो , मेरी आजादी मुझे दे दो, मैं हिम्मत नहीं हारूंगी, अभी छोटी उड़ाने भर रही हूं , एक दिन इसे चकमा देकर, आसमान में कहीं दुर उड़ जाउंगी।
तो दोस्तों, पक्षियों की आजादी उनसे ना छिनो, आकाश में उन्हे उड़ने दो , नहीं तो इनकी मधुर चहचहाहट कभी सुनने को नहीं मिलेगी ----ओम....!

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