दोना पुड़गा

दोना पुड़गा......!

खाना जब लजीज हो तो आदमी उंगलियां भी चाट चाट कर खाता है। अच्छी सब्जी के , पीछे बनाने वाला, उसमे डाले गये मसाले और बनाने की विधि और उपयोगी पात्र ये सभी महत्वपूर्ण कारक होते है। तभी सब्जी बेहद ही लजीज बनती है और हम उसे खाकर तृप्त हो जाते है। आज हम बात करते है जायकेदार खाना बनाने की बस्तरिया पद्धति की।
बस्तर में खाना बनाने की एक पुरातन पद्धति प्रचलित थी जो अब भी कहीं कहीं प्रचलन में है। बस्तर के लोगो में मांसाहार विशेष रूप से सम्मिलित है। जंगल में या घर में मांस की सब्जी बनाने की एक पुरानी पद्धति बस्तर में देखने को मिलती है, इस पद्धति में बर्तनों का उपयोग नहीं किया जाता है। मांस को अच्छी तरह से धोकर, हल्दी नमक मिर्च एवं मसाले सहित पत्तों के दोनो में अच्छे से बांध दिये जाते है इन दोनो में तेल या पानी नहीं डाला जाता है। इन पत्तों के दोनो को आग में सेका जाता है। इससे यह बेहद स्वादिष्ट डिश बनती है और सेहत के लिये फायदेमंद होती है।

वैसे दोना पुड़गा में मांस तो पकाया ही जाता है जिसमें मछली की डिश बड़ी ही स्वादिष्ट बनती है। इस पुरी पद्धति को दोना पुड़गा कहा जाता है। विश्व के नंबर 01 शेफ गार्डन रामसे ने दोना पुडगा को अपने मेन्यु में शामिल किया है। स्टील एवं एल्युमिनियम के बर्तनों के मुकाबले पत्तों में पका हुआ मांस ज्यादा स्वादिष्ट एवं सेहत के लिये फायदेमंद होता है। आवश्यक प्रोटिन नष्ट ना होकर सीधे हमें मिलते है।
पहले एवं अब भी जंगल में जब भी आदिवासी पारद के लिये जाते है तो पत्तों की सहायता से इसी तरह अपना खाना(मांस की सब्जी) पकाते है। दोना पुडगा से तैयार डिश वाकई बेहद लजीज होती है। कभी आप भी ऐसे ही किसी पिकनिक पर जाये और मांसाहार के शौकिन है तो दोना पुडगा पद्धति का प्रयोग कर अपनी डिश तैयार करे और पिकनिक का आनंद उठाये, और यदि आप शाकाहारी है तो कोशिश करे कोई ऐसी सब्जी बनाने की जो इन पत्तों के दोनो से तैयार हो जाये और साथ ही हमें फोटो जरूर भेजे.. ओम सोनी...! फोटो सांकेतिक है।
कापी ना करें। अधिक से अधिक शेयर करें।

Comments

Popular posts from this blog

कंघी

कर्णेश्वर मंदिर सिहावा

सातधार जलप्रपात Satdhar Watefall Barsur