बस्तरिया मोर

बस्तरिया मोर.....!

मोर प्रारंभ से इंसानों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। मोर को हिन्दु धर्म में सर्वोच्च पक्षी माना गया है।  श्री कृष्ण के मुकुट में लगा मोर पंख इस पक्षी के महत्व को दर्शाता है। कार्तिकेय का वाहन भी मोर है। सिर पर इसकी कलगी इसके ताज को दर्शाती है जिससे मोर अपनी सुंदरता के कारण पक्षियों का राजा कहलाता है। अपने पंख फैलाकर एक टांग में नाचता हुआ मोर बेहद ही खुबसूरत लगता है। अनेक राजाओ ने मोर को अपने सिक्को में स्थान दिया। मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही भारत सरकार ने 26 जनवरी 1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। मोर का वैज्ञानिक नाम पावो क्रिस्टेटस है। 


बस्तर के जंगलो में मोर कभी बहुतायत में पाये जाते रहे है। आज भी देखने को मिल जाते है। बस्तर के कई गांवों में मोर को पाला जाता है। जंगल में मोरनी के घोसलों से अंडे लाकर मुर्गी के अंडो के साथ रख दिये जाते है। फिर उनसे मोर के छोटे छोटे चुजे निकलकर गांव भर में घुमते रहते है। नर और मादा मोर की पहचान बिलकुल सरल है। नर मोर नीले, जामुनी रंग के अपने सुंदर पंखों के कारण पक्षियों का राजा कहलाता है वहीं मोरनी बड़ी सी मुर्गी की तरह बिल्कुल सौंदर्य हीन होती है। 

मोर के पंखों से झाड़फूंक करने वाले चंवर भी बनाये जाते है। तीरों में भी पीछे मोर के पंख ही लगाये जाते है। मैने बस्तर के कई गांवो में मोरों को देखा है। मोर का प्रस्तुत चित्र तुमनार के पास के कासोली पारा में लिया गया है। देश के लगभग सभी हिस्सो में मोर पाये जाते है। उत्तरी भारत राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा आदि राज्यो के  गांवो में मोर निडरता से विचरण करते हुये दिखाई पड़ते है। 


छत्तीसगढ में बालोद से दल्ली राजहरा जाने वाले रोड में भी मैने कई बार मोर भागते हुये देखे है। जंगल में मोर नाचा किसने देखा मैने देख मैने देखा।  आप ने मोर देखा है तो कहां देखा है ? 

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