मंगलतराई का बाजार चारामा......!
07 जुलाई को मैं कांकेर के चारामा क्षेत्र में मंगलतराई गांव गया था। मंगलतराई चारामा की घाटियों में बसा वन ग्राम है। बालोद से लगा हुआ क्षेत्र होने के कारण छत्तीसगढ़ और बस्तर की मिली जुली महक इस गांव की फिजा में घुली हुई है।
इस गांव में शनिवार को एक छोटा सा बाजार लगता है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के किसी बाजार का यह मेरा पहला अनुभव था। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बाजार पार्ट टाईम जाब की तरह होते है। वहीं बस्तर के बाजार सुबह से लेकर शाम तक चलते है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण मेले और बस्तर के साप्ताहिक बाजार दोनो एक जैसे भीड़ वाले होते है।
03 से 06 बजे तक तीन घंटे के बाजार में बहुत सी दुकाने लगती है। सब्जियां, मनिहारी, गुड़, तेल, पकवान आदि छोटी मोटी कई दुकाने बाजार में सजती है। बाजार में बिकती वस्तुये सिर्फ उस ग्राम की रसद की पूर्ति करने लायक ही थी।
इस बाजार में मैने एक अलग दुकान देखी, ऐसी दुकान मैने बस्तर के बाजारों में कभी नहीं देखी। यह दुकान थी खाने के तेल की। तेल की दुकान बहुत से तेल टीनों से सजी हुई थी। पुरे बाजार में यदि सबसे ज्यादा भीड़ किसी दुकान में थी तो वो दुकान इस तेल वाले की थी।
महिलाये आती जा रही थी और आवश्यकतानुसार बोतलो में तेल खरीद कर ले जा रही थी। इसके विपरित बस्तर के बाजारों में खाने वाले तेल की दुकाने मैने कभी लगते नही देखी। यहां आम तौर टोरा का तेल ही खाने में प्रयोग किया जाता है। हाथ पैर सिर में लगाने और खाने के लिये टोरे के तेल पर वनवासियों का भरोसा सदियों से है।
टोरा तेल स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होता ही है इसके अलावा नियमित रूप से बालों में लगाने पर बाल सफेद भी नहीं होते है। बस्तर मे रूई की तरह सफेद बाल वाला वृद्ध या वृद्धा ढूंढने से भी नहीं मिलती है।
मैने उड़द के बड़ों, मिर्चा और टमाटर की चटनी के साथ 07 जुलाई की संध्या मंगलतराई बाजार में ही बितायी। ऐसे ही किसी बाजार का आपका अनुभव क्या रहा है ? जरूर शेयर करें----ओम!
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