बैलाडिला
बस्तर की पहचान - बैलाडिला......!
बैलाडिला की लौह खदाने पुरे एशिया में बस्तर की पहचान है। बैलाडिला पर्वत श्रृंखला की अवस्थिति दक्षिण बस्तर के मस्तक पर तिलक के समान है। बैलाडिला नाम पड़ने के पीछे महत्वपूर्ण कारण है यह कि इसकी सर्वोच्च चोटी का आकार बैल के डीले अर्थात बैल के कुबड़ के समान है। जिसके कारण इस पर्वत श्रृंखला को बैलाडिला के नाम से जाना जाता है।
बैलाडिला की पहाड़ियों पर राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा 1966 से लगातार की जा रही है। बैलाडिला की लौहे खाने एशिया की सर्वश्रेष्ठ लौह खाने है। यहां का लौह अयस्क उत्तम श्रेणी का है इसमें लोहे की मात्रा 60 से 70 प्रतिशत तक पाई जाती है। किरन्दुल कोटवालसा रेलमार्ग द्वारा जापान और विशाखापटनम संयंत्र में लौह अयस्क का निर्यात किया जाता है। बैलाडिला की तलहटी में दो नगर बसे है पहला बड़े बचेली और दुसरा किरन्दुल।
सामान्यत बोलचाल की भाषा में किरन्दुल के लिये बैलाडिला का प्रयोग किया जाता है जिससे अधिकांशत लोगो को बैलाडिला नामक अन्य नगर होने का भ्रम होता है। बैलाडिला पहाड़ी के कारण ही उस क्षेत्र को बैलाडिला की संज्ञा दी गई है। एक अनुमान के मुताबिक इन पहाड़ो में इतना लौह अयस्क है कि यह हजार वर्ष तक भी खत्म नहीं होगा।
बैलाडिला की चोटी छत्तीसगढ़ में दुसरी सबसे उंची चोटी है। छत्तीसगढ़ में गौरलाटा 1225 मीटर उंचाई लिये सबसे उंची चोटी है वहीं दंडकारण्य पठार में अवस्थित बैलाडिला की चोटी 1210 मीटर की उंचाई के साथ छत्तीसगढ़ में दुसरे स्थान पर है। बैलाडिला से लगभग 80 किलोमीटर दुर बंजारिन घाट से ही बैलाडिला की यह चोटी दिखाई देने लगती है। दंतेवाड़ा जिले में किसी भी जगह से आपको यह चोटी जरूर दिखाई देगी।
बैलाडिला की लौह चोटियों ने बस्तर के इतिहास में भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। बैलाडिला की एक चोटी ढोलकल पर भगवान गणेश की हजार वर्ष से अधिक पुरानी प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। यह स्थान अब पुरी दुनिया में दंतेवाड़ा की पहचान बन चुका है। यहां के नाग शासकों ने अपने अस्त्र शस्त्र के लिये बैलाडिला की लौह अयस्क का ही प्रयोग किया था।
----ओम !
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