गोन्चा


गोन्चा - बस्तर का तिहार.....!

उत्कल देश मे विराजित भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पुरे देश मे उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाई जाती है. गली गली मे जगन्नाथ भगवान के रथ खींचने की होड़ मची रह्ती है. आषाढ मास में ह्ल्की फ़ुहारो के साथ जय जगन्नाथ जयकारा गुंजता रह्ता है.

नवांकुर धान की हरितिमा लिये माशुनि देश के वनो में सुन्दर रथो पर सवार भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा हर किसी का ध्यान आकर्षित करती है.
जहाँ सारा विश्व रथयात्रा के नाम से उत्सव मनाता है वही भ्रमरकोट का बस्तर इसे गोन्चा नाम का अनोखा सम्बोधन देता है.


रथयात्रा यहाँ गोन्चा पर्व कहलाती है, गोन्चा नाम का सम्बोधन मुझे एक एतिहासिक संस्मरण का याद दिलाता है. यह संस्मरण बस्तर के चालुक्य नृपति रथपति महाराज पुरुषोत्तम देव के संकल्प को फ़िर से ताजा कर देता है.
वारनगल से आये , चालुक्य कुल भूषण महाराज अन्नमराज के पौत्र भयराजदेव बस्तर के राजा भये. भयराजदेव के पुत्र हुए रथपति पुरुषोत्तम. यथा नाम तथा गुण इस बात को सिद्ध करते महाराज पुरुषोत्तम देव 1408 की इस्वी मे चक्रकोट राज्य के राजा बने.

1324 में अन्नमदेव से लेकर सन 47 के प्रवीर तक इन चालुक्य नृपतियो मे पुरुषोत्तम देव का राजत्व काल धार्मिक काल था. सर्वाधिक धार्मिक राजा. इनके धार्मिक सांस्कृतिक कार्यो का जसगान बेह्द लम्बा है. यह यशोगान कभी और दिन पुरा करेंगे.

एक रात्रि पुरुषोत्तम देव को स्वप्न मे जगन्नाथ भगवान ने दर्शन दिये. भगवान की आग्या से पुरुषोत्तम देव दल बल और रसद समेत , उत्कल देश की पदयात्रा पर निकल पड़े. जनश्रुति है कि साष्टान्ग दंडवत प्रणाम करते हुए महाराज पुरुषोत्तम पुरी पहुँचे.
जिस दिन पुरी पहुँचे उस दिन तिथी थी आषाढ शुक्ल की द्वितीया.

पुरी मे रथयात्रा प्रारंभ हो चुकी थी, श्रद्धालु रथ खींचते जा रहे थे परन्तु रथ के पहिये टस से मस भी नहीं हो रहे थे.
महाराज के पहुंचते ही उन काष्ट पहियो मे जान आ गयी और रथ चल पड़े.
वहाँ उपस्थित गजपति राजा ने देव पुरुषोत्तम को रथपति की उपाधि से सम्मानित किया.
रथपति के सम्मान से विभूषित महाराज ने बस्तर मे भी रथयात्रा प्रारंभ करवायी. गुन्डिचा से बिगडा शब्द बस्तर मे गोन्चा बन पडा.

बस्तर मे छ सौ साल पुरानी यह रथयात्रा , गोन्चा पर्व के नाम से बड़े उल्लास के साथ मनाई जा रही है.
बस्तर की आखिरी राजधानी जगदलपुर मे , प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक , गोन्चा तिहार मनाया जाता है. बाकी गाँवो मे अपनी सुविधा अनुसार गोन्चा तिहार मनाते है.
दशहरा की रथयात्रा भी इसी जनश्रुति से जुड़ी हुई है.

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