गुंडाधुर

भूमकालेया - गुंडाधुर.....!

1774 ई से अंग्रेज बस्तर में लगातार पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे। बीसवी सदी आते तक वे बस्तर के सार्वभौम बन चुके थे। इन दो सौ साल में बस्तर के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध कई बार विद्रोह का झंडा बुलंद किया और हर बार विद्रोहियों का दमन किया गया। 
1910 का महान भूमकाल आंदोलन बस्तर के इतिहास में सबसे प्रभावशाली आंदोलन था। इस विद्रोह ने बस्तर में अंग्रेजी सरकार की नींव हिला दी थी। पूर्ववती राजाओं के नीतियों के कारण बस्तर अंग्रेजों का औपनेविषक राज्य बन गया था। बस्तर की भोली भाली जनता पर अंग्रेजो का दमनकारी शासन चरम पर था। दो सौ साल से विद्रोह की चिंगारी भूमकाल के रूप में विस्फोटित हो गई थी। 
भूमकाल आंदोलन के पीछे बहुत से कारणों की लंबी श्रृंखला है। आदिवासी संगठित होकर अंग्रेजी सत्ता को बस्तर से उखाड़ फेककर मुरियाराज की स्थापना के लिये मरने मारने पर उतारू हो गये थे। बस्तर के आदिवासियों के देवी दंतेश्वरी के प्रति आस्था में अंग्रेजी सरकार का अनावश्यक  हस्तक्षेप बढ़ गया था। अंग्रेजी सरकार द्वारा नियुक्त दीवानों की मनमानी अपने चरम पर थी। वनों की अंधाधूंध कटाई कर आदिवासियों को उनके जल जंगल जमीन से वंचित किया जा रहा था।  आदिवासियो और राजा रूद्रप्रताप में आपसी विश्वास एवं समन्वय की कमी और राजपरिवार के अन्य सदस्य लाल कालिन्दर सिंह और राजा की सौतेली मां सुवर्णकुंवर देवी के अंग्रेजो और राजा के प्रति शंका ने उन्होने विद्रोह का झंडा बुलंद करने के लिये विवश किया। 
साहब लाल कालिन्दर सिंह जो राजा के चाचा थे, उन्होने आदिवासियों के अंदर विद्रोह की ज्वाला को पहचान कर उन्हे दिशा देने का कार्य किया। मध्य बस्तर और सुकमा जिले में आदिवासियों की एक अन्य जनजाति धुरवा आदिवासियों की बाहुल्यता है। धुरवा आदिवासी राजपरिवार के निकट थी और अंग्रेजो के शासन में सर्वाधिक शोषित जनजाति थी। 


लाल साहब ने नेतानार के विद्रोही नेता गुंडाधुर को आदिवासियों का नेता बनाकर विद्रोह की रूपरेखा तय की। राजमाता सुवर्णकुंवर देवी ने भी लाल साहब और गुंडाधुर के साथ मिलकर विद्रोहियों को नेतृत्व प्रदान किया। 
गुंडाधुर बस्तर में एक लीजेण्ड है। उन्होने आदिवासियों को कुशल नेतृत्व प्रदान किया साथ ही उसने लोगो के मन में विश्वास जगाया और सभी वर्गो का समर्थन प्राप्त किया। बस्तर के महिलाओं में गुंडाधुर की छवि राबिनहुड के समान थी। धुरवा जाति के कारण गुंडा धुर कहलाता था। उसकी बहुत सी किंवदंतियां आज भी सुनने को मिलती है। शरीर से मजबूत, उंचे लंबे कद और चीते से फूर्ती वाला गुंडाधुर ने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था। उसके पास गायब होने की अदभूत क्षमता थी, उसकी पूंछ भी थी, पलक झपकते ही एक जगह से दुसरे जगह पहुंचने की शक्ति थी, ऐसी बहुत से अनजाने किस्से और गुंडाधुर की अनोखी विशेषतायें आज भी बुढ़े बुजुर्गो से सुनने को मिलती है। कुछ लोग आज भी गुंडाधुर को एक किंवदंती मानते है और कुछ तो लाल कालिन्दर सिंह को ही गुंडाधुर मानते है। परन्तु गुंडाधुर वास्तव में गुंडाधुर था वो सच्चा क्रांतिकारी नायक था जिसने महान भूमकाल विद्रोह का नेतृत्व किया। 
गुंडाधुर ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर प्रत्येक परगने में विद्रोहियों का जत्था तैयार किया। गांव गांव में लाल मिर्च बंधी आम की टहनियों डारा मिरी को लेकर अंग्रेजो के प्रति विद्रोह का प्रचार किया। प्रत्येक परगने में अलग अलग नेताओं ने गुंडाधुर के नेतृत्व में विद्रोह के लिये मोर्चा बना गया।  1908 के ताड़ोकी से भूमकाल आंदोलन की शुरूआत हो चुकी थी। योजनाबद्ध तरीके से 2 फरवरी 1910 को पुसपाल बाजार लूटा गया, 4 फरवरी को कुकानार बाजार और 5 फरवरी करंजी बाजार लूटा गया। इधर राजा ने अंग्रेजो को विद्रोह की सूचना दे दी गई।  9 फरवरी को कुआंकोंडा का थाना लूटा गया। तीन पुलिसवाले मारे गये। 13 फरवरी को गीदम बाजार लूटा, स्कूल भी जला दिया गया।  16 फरवरी को खड़कघाट में अंग्रेजी सेना और विद्रोही में मुठभेड़ हुई जिसमें कई आदिवासी मारे गये। लाल कालिन्दर सिंह एवं अन्य नेता गिरप्तार कर लिये गये। 
03 मार्च को नेतानार में गुंडाधुर और अंग्रेजी सेना में जबरदस्त मुठभेड़ हुई। सोनू माझी के विश्वास घात के कारण अंग्रेजो ने विद्रोहियों को घेर लिया।  विद्रोहियों को हजारों की संख्या में मारा गया। गुंडाधुर भाग निकलने में कामयाब हो गया वहीं डेबरीधुर और अन्य सहयोगी पकड़े गये जिन्हे फांसी दी गई। 03 मई 1910 तक विद्रोह का दमन किया जा चुका था। 
अंग्रेज गुंडाधुर को पकड़ नहीं पाये। उसके बाद गुंडाधुर कहां गया और उसका क्या हुआ इसका आज तक कोई अता पता नहीं है। गुंडाधुर को अंग्रेज हरकीमत पर पकड़ना चाहते थे किन्तु आखिर तक गुंडाधुर अंग्रेजों के हाथ नहीं आया। वह मृत्युंजय है और आज भी प्रासंगिक है। 
गुंडाधुर आज भी बस्तर के इतिहास में जीवित है। कोई नही कहता कि गुंडाधुर मर गया। उसने आदिवासियों को एकत्रित कर अंग्रेजी सरकार के प्रति महान भूमकाल आंदोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेजी सरकार से बस्तर को स्वाधीन करने का भरसक प्रयास किया। बस्तर में गुंडाधुर का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। गुंडाधुर आज भी यहां अमर है। गुंडाधुर दमन कारी अंग्रेजी हुकूमत से बस्तर को आजादी दिलाने वाले नायकों की अग्रिम पंक्ति में शामिल है। इस महान भूमकालेया आटविक योद्धा गुंडाधुर की शौर्य गीत आज भी बस्तर में गाये जाते है।  प्रतिवर्ष 10 फरवरी को भूमकाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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