चांदी के कड़े
अब नहीं पहने जाते है चांदी के कड़े....!
महिलाओं की तरह पुरूषों को भी गहनों से खासा लगाव रहा है। पुराने दिनों में पुरूष भी महिलाओं की तरह ही सोने चांदी के गहने पहनते थे। जिसका प्रमाण हमें आज भी बस्तर में देखने को मिलता है। यहां के जनजातीय समाज के पुरूषों में महिलाओं की तरह, कान , गले, हाथ, पैर जैसे अंगों में महिलाओं की तरह ही सोने चांदी के आभूषण पहनने की आदिम परंपरा रही है।
पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव के कारण, अब बस्तर के नौजवानों को अपने पूर्वजों की तरह गहनों से कोई खास लगाव नहीं रहा। धीरे धीरे बस्तर से भी पुरूषों द्वारा पहने जाने वाले परंपरागत आभूषण लूप्त होते जा रहे है। किसी खास आयोजन पर ही पुराने बुढ़े बुजुर्ग ही सोने चांदी के गहने पहने हुये दिख जाते है। केशकाल के भंगाराम जातरा में पुरूषों द्वारा पहने जाने वाले गहनों की खोज में बहुत कुछ नया मिला।
यहां मैने कुछ बुजुर्गो के हाथों में चांदी के कड़े देखे जो कि पुराने चांदी के सिक्को से बने हुये थे। ये साधारण कड़े शुद्ध ठोस चांदी से बने हुये है। आजकल के लड़को में भी कड़े पहनने का फैशन है लेकिन सिर्फ तांबे या गिलट के ही। चांदी के कड़े बहुत पुराने समय से पहने जा रहे है। आज के समय जहां सिर्फ एक हाथ में ही कड़ा पहना जाता है वहीं पुराने समय में दोनो हाथो में कड़े पहने जाते थे।
बस्तर के आदिवासी पुरूषों के गहनो में कड़ा एक प्रमुख आभूषण रहा है जो आज सिर्फ बुजूर्गो के हाथो में दिखलाई पड़ता है। इन आभूषणों का चलन अब कम हो गया है जिसके कारण भविष्य ऐसे गहने पहनने वालों की सिर्फ फोटो ही एकमात्र प्रमाण होगी....ओम सोनी !
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