गेड़ी
लूप्त होती जा रही बस्तर की गेड़ी परंपरा......!
बस्तर में बहुत सी पुरानी परंपराये अब समय के साथ विलुप्त होती जा रही है। गेड़ी परंपरा भी अब बस्तर से विलुप्ति की कगार पर है। आज भी बस्तर के कुछ ग्रामीण क्षेत्रो मे गेड़ी चढ़ने की पुरानी परंपरा देखने को मिलती है। यहां बस्तर में गेड़ी को गोड़ोंदी कहते है।
हरियाली त्यौहार मनाने के बाद गेड़ी चढ़ने की परंपरा निवर्हन की जाती है। गेड़ी बनाने के लिये 7 फीट की दो लकड़ियों में 3 फीट की उंचाई पर पैर रखने के लिये लकड़ी का गुटका लगाते है। काफी संतुलन एवं अभ्यास के बाद गेड़ी पर चढ़कर बच्चे गांव भर में घुमते है। कई बच्चे एक दुसरे गेड़ी के डंडे टकराकर करतब भी दिखाते है। इसे गोडोंदी लड़ाई कहते है।
बस्तर के कुछ क्षेत्रों में गेड़ी से जुड़ी कुछ मान्यताये भी जुड़ी है। हरियाली से नवाखानी भाद्रपक्ष की नवमीं तक गांव में गोडोंदी को रखते है। नवाखानी के दुसरे दिन प्रातः से गोडोंदी बनाये हुये सभी बच्चे गांव घर मे घुमकर चावल दाल दान मांगकर एकत्रित करते है। सभी घरों से मिले दान को गोडोंदी देवता के सामने रखकर गोडोंदी देवता की विधि विधान से पूजा अर्चना करते है।
उसके बाद सभी गेड़ियों को तोड़कर पत्थर की शिला के उपर रखते है। इस पूजा मे मात्र कुंवारे लड़के ही भाग लेते है। एक अंडे को उछाल कर टूटे डंडो से उपर तोड़ने का प्रयास करते है। अगर अंडा डंडे से टकराकर नहीं टूटता और जमीन पर गिर जाता है तो उसे देवता का विश्वास माना जाता और फिर उसे जमीन में गाड़ देते है।
गेड़ी यह परंपरा अब बस्तर के गांवों से विलुप्त होते जा रही है , बस्तर की भावी पीढ़ी को इसके संरक्षण की जिम्मेदारी उठानी होगी। गेड़ी चढ़े हुये बच्चो की इतनी सुंदर तस्वीरों के लिये शकील रिजवी सर को बहुत धन्यवाद ।Om Soni !
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