गीदम जात्रा
लाई लड्डू वाला जात्रा.....!
प्रतिवर्ष अगहन माह में धान कटाई के बाद बस्तर में जात्रा का आयोजन प्रारंभ हो जाता है। निर्विघ्न धान कटाई के बाद देवी को कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिये देव गुड़ी में ग्रामीण जात्रा का आयोजन करते है। ग्राम देवी से कृषि बाड़ी की समृद्धि और घातक बीमारियों से सुरक्षा के लिये देवी से प्रार्थना की जाती है। ग्राम देवी को अपनी शक्ति के अनुसार नारियल फल प्रसाद आदि का चढ़ावा चढ़ाते है।
सदियों पुरानी परंपरानुसार ग्रामीण देवी के सम्मुख चढ़ावा के रूप में बकरा, मुर्गा, बतख आदि की बलि भी देते है। छोटे स्तर पर मेले का आयोजन भी होता है। अगहन माह में बस्तर की मुख्य देवगुड़ियों में इस प्रकार के जात्रा का आयोजन होता है। जात्रा में आसपास के ग्रामों के देवी देवताओं के छत्र डंगईयां एवं ध्वजा भी शामिल होने के लिये आते हैं। विभिन्न देव गुड़ियों के मुख्य पुजारी बैगा सिरहा भी देवी की सामुहिक वंदना करते है।
माहरा समुदाय के वादकों द्वारा देवी के सम्मान में मोहरी बाजा बजाते है। मोहरी बाजा की कर्ण प्रिय आवाज से पुरे जात्रा का माहौल भक्तिमय हो जाता है। देवी से सुख समृद्धि की कामना करने हेतु भक्तों की भीड़ लगी रहती है। विभिन्न मिठाईयों , सामानों एवं खिलौने की दुकाने सजती है। आवश्यकतानुसार ग्रामीण जरूरतों का सामान लेते है। आदिवासी बालायें नृत्य संगीत के माध्यम से अपनी खुशियां जाहिर करती है और जात्रा का आनंद लेती है।
दंतेवाड़ा में जात्रा के आयोजन के बाद गीदम के मातागुड़ी में शीतला माता के सम्मान में प्रतिवर्ष जात्रा का आयोजन होता है। यहां के जात्रा में मेले के ही तरह काफी भीड़ होती है। कई दुकाने सजती है। परंपरा के चलते ग्रामीण जात्रा से कुछ ना कुछ सामान अवश्य खरीद कर ले जाते है।
गीदम के जात्रे में मै हर वर्ष जाता हूं। बचपन में तो जात्रा में जाने का काफी शौक था। स्कुल से जल्दी आने की कोशिश करते, फिर दौड़कर जात्रा में घुमने जाते थे। दरअसल जात्रा जाने का मेरा उद्देश्य देवी दर्शन के साथ लाई लडडू भी खाना होता था। गीदम के इस जात्रे में लाई लड्डू का चलन सालों पुराना है। यहां के दुकानों में हाथो हाथ लाई और गुड़ के घोल से लड्डू बनाकर बेचा जाता है।
आलेख ओम सोनी
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