इंद्रावती
बस्तर की प्राणदायिनी - इंद्रावती.....!
इंद्रावती, बहुत ही प्यारा नाम है बस्तर की इस सरस सलिला का। बस्तर के लाखों लोगों को जीवन देने वाली इस इंद्रावती से हर बस्तरिया उतना ही प्रेम करता है जितना अपनी मां से। बस्तर में ना जाने कितनों को बनते बिगड़ते देखा है इस इंद्रावती ने। इंद्रावती ने बस्तर की इस धरती को सींच सींच कर हरा भरा बनाया है।
वर्षा काल में जब इंद्रावती अपने रौद्र रूप को धारण कर लेती है तो पुरा बस्तर उसके सामने नतमस्तक हो जाता है। गर्मी के दिनों में यह पुरे बस्तर की प्यास बुझाती है वहीं शीतकाल में अपने नीले जल की सुंदर छटा बिखेरते हुये हर किसी का मनमोह लेती है। बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती के बिना बस्तर की कल्पना नहीं की जा सकती है।
इंद्रावती नागयुगीन बस्तर की इंद्रनदी है जिसके तट पर नागों ने अपना साम्राज्य स्थापित किया। नागों ने भी इंद्रावती को अपनी मां मानकर इसके तट पर ही अपनी राजधानियां स्थापित की थी।
इंद्रावती नदी गोदावरी नदी की सहायक नदी है। इस नदी का उदगम स्थान उड़ीसा के कालाहन्डी जिले के रामपुर थूयामूल में है। नदी की कुल लम्बाई 240 मील है। जगदलपुर के पास ही विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात का निर्माण करती है। इतना चैड़ा झरना पुरे एशिया में कहीं नहीं है। विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात बस्तर को इंद्रावती का अनमोल उपहार है।
धने जंगलों में बहती हुई इंद्रावती बारसूर को प्राचीन राजधानी का स्वरूप देती है। सातधाराओं मंे बंटकर इंद्रावती सतरंगी इन्द्रधनुष बनाकर लोगों के दिलो दिमाग पर राज करती है। भैरमगढ़ के पास इंद्रावती अबूझमाड़ की ओर मुड़ जाती है। माड़ के घने जंगलों में में माड़ियां आदिवासियों के साथ लाखो पशु पक्षियों के जीवन की एकमात्र सहारा बन जाती है।
महाराष्ट्र और बस्तर की सीमा निर्धारित करते हुये भोपालपटनम के पास बेहद ही विशाल रूप धारण कर लेती है। माड़ के जंगलो में गहरी खाईयों से होकर पुरे वेग से इंद्रावती आगे बढ़ती है वहीं भोपालपटनम के पास इंद्रावती धीरे धीरे कदमों से आगे बढ़ती है। यहां वियोग का मार्मिक दृश्य उत्पन्न होता है। इंद्रावती भद्रकाली से थोड़ी दुर आगे गोदावरी में विलीन हो जाती है।
कोंटा से कुछ आगे बस्तर की दुसरी नदी शबरी भी गोदावरी में विलीन होती है। गोदावरी की दोनों बेटियां इंद्रावती और शबरी बस्तर की धरती को नया जीवन दान देती है।
इन्द्रावती की प्रमुख सहायक नदियों में कोटरी निबरा बोराडिग नारंगी उत्तर की ओर से तथा नन्दीराज चिन्तावागु इसके दक्षिण एवं दक्षिण.पूर्वी दिशाओं में मिलती हैं। दक्षिण.पश्चिम की ओर डंकनी और शंखनी इन्द्रावती नदी में मिलती हैं।
इंद्रावती सदा स्वच्छ रहे इसका दायित्व हम सभी का है। हमें अपने स्तर पर भी इंद्रावती को प्रदूषण से मुक्त बनाये रखना है। इंद्रावती के प्रति यही हमारी सच्ची कृतज्ञता है।
आलेख ओम सोनी दंतेवाड़ा
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