ढेकी की आवाज
अब नहीं गूंजती ढेकी की आवाज.......!
आज हम लोगों में से बहुत लोग ढेकी का नाम भी नहीं सुने होगे, और ना ही कभी देखे होंगे कि ढेकी आखिर चीज क्या है? आज गेहूं पीसने , धान कूटने के लिये बड़ी बड़ी राईस मिले, आटा चक्की मशीने उपलब्ध है। पहले के जमाने में जब ये मशीने नहीं थे तब धान कूटने के लिये लकड़ी से बनी ढेकी का ही सहारा था।
ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग प्रत्येक धर में ढेकी होती थी, ढेकी के लिये अलग से कमरा होता था जिसमें सिर्फ धान कूटने का ही काम किया जाता था। अधिकांशत धरों के बरामदे में किनारे ढेकी को स्थापित किया जाता था।
पैर से ढेकी एक सिरे को दबाया जाता है , तो दुसरे तरफ धान पर ढेकी की चोट पड़ती है और धान कूटने का कार्य परंपरागत तरीके से हो जाता था। ढेकी से कुटे हुये धान में पौष्टिक तत्व भी अधिक मात्रा में रहते है और खाने में भी स्वादिष्ट होता है।
बिना किसी मशीनरी से धान कूटने की यह परंपरागत ढेकी अब देखने को भी नहीं मिलती है और ना ही ढेकी की आवाज अब सुनाई देती है।
ग्रामीण क्षेत्रो में धान कूटने की मशीनरी दुकान उपलब्ध नहीं होने पर बस्तर में भी आदिवासी ढेकी से ही धान कूटते थे। धरो घर ढेकी होती थी। किन्तु अब ढेकी संस्कृति अपने अंतिम दौर पर है। ढेकी तो अब सिर्फ म्यूजियम की वस्तु बन चुकी है।
छायाचित्र सौजन्य - हयूमन्स आॅफ गोंडवाना ।
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