हिड़पाल
हिड़पाल के भगवान पारसनाथ.....!
बस्तर में ग्यारहवी सदी में छिंदक नाग शासक राजभूषण महाराज सोमेश्वर देव ने जैन धर्म को संरक्षण दिया था। उनके शासनकाल में पुरे चक्रकोट राज्य में जैन साधु निवास करते थे। तत्कालीन समय में जैन तीर्थंकरों की बहुत सी प्रतिमायें बस्तर के कोने कोने में स्थापित करवायी गयी थी।
सोमेश्वर देव की राजधानी कुरूषपाल के आसपास आज भी जैन तीर्थंकरों की बहुत सी प्रतिमायें देखने को मिलती है। उप राजधानी बारसूर में भी कुछ प्रतिमायें संग्रहालय में सुरक्षित है।
बारसूर के पास ही हिड़पाल नामक छोटा सा वन ग्राम है। बारसूर से 16 किलोमीटर दुर हिड़पाल ग्राम में भालूनाला के पास भगवान पारसनाथ और सिंह पर सवार माता दुर्गा की प्रतिमा रखी हुई थी। स्थानीय ग्रामीण इन्हे भगवान विष्णु और दुर्गा के रूप में पूजा करते आ रहे है। भगवान विष्णु की प्रतिमा वास्तव में 23 वें जैन तीर्थंकर भगवान पारसनाथ जी की है। प्रतिमा में पीछे की तरफ सात फण युक्त सर्प उकेरा गया है।
ये प्रतिमायें 1982 के आसपास हिड़पाल में कुसुम पेड़ के नीचे रखी हुई थी। पास के गांव वाले इन प्रतिमाओं को उठाकर अपने ग्राम ले जा रहे थे। लेकिन वे इस कार्य में असफल रहे। ग्रामीणों ने इन प्रतिमाओं को भालूनाले के पास ही एक छोटी सी देवगुड़ी में स्थापित कर दिया था। वे सालों से इनकी पूजा अर्चना करते आ रहे है।
बारसूर जाने से पहले एक कच्चा मार्ग हिडपाल की ओर जाता है। हिड़पाल के घने जंगलों में भालूनाले के पास ही ये प्रतिमायें वर्तमान में एक नवीन मंदिर स्थापित कर दी गई है। हिड़पाल जाने का मार्ग भी घने जंगलों से घिरा हुआ है।
जिस नाले के किनारे यह मंदिर है वहां भालू पानी पीने आते है जिसके कारण उसे भालूनाला कहा जाता है। ग्यारहवी सदी की ये प्रतिमायें आज भी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ हिड़पाल के जंगलों में सुरक्षित है। किसी जानकार व्यक्ति के साथ हिड़पाल की इन प्रतिमाओं को देखने जा सकते है। ओम।
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