छिंदगांव

आज भी राजाज्ञा का पालन  करते है ग्रामीण.......!

बागलकोट के सिन्द नागवंशी सामंतो ने आठवी सदी के मध्य चक्रकोट में अपनी सत्ता कायम की । नाम में अपभ्रंश के कारण सिन्द शाखा सेन्द्रक और बाद में छिंदक नाग वंश के रूप में जानी गई। सिंदो का गांव सिंद गांव जो बाद में छिंदगांव के नाम से जाना गया। इंद्रावती के तट पर बसा छिंदगांव वर्तमान में एक छोटा सा ग्राम है जिसका नाम आज कई लोगों के लिये बिल्कुल नया होगा। 

छिंदक नागयुगीन चक्रकोट में छिंदगांव एक महत्वपूर्ण गढ़ था। गढ़ के अवशेष तो अब शेष नहीं रहे किन्तु एक जीर्ण शीर्ण मंदिर नागों के इतिहास को संजोये हुये अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। इस शिव मंदिर की स्थिति इतनी दयनीय हो गयी है कि एक हल्के झटके से पुरा ढांचा भरभराकर गिर जायेगा। 


यह मंदिर एक उंची जगती पर बना है। मंदिर गर्भगृह अंतराल और मंडप में विभक्त था। मंडप के सभी स्तंभ गिर चुके है। अब मात्र गर्भगृह ही शेष है। गर्भगृह के बाहर भगवान गणेश की प्रतिमा रखी हुई है। द्वार के ललाट बिंब पर नृत्य गणेश की प्रतिमा अंकित है।  छः सीढ़ियां उतर कर गर्भगृह में प्रवेश किया जा सकता है।  गर्भगृह में शिवलिंग प्रतिस्ठापित है। 


ग्रामीण यहां स्थापित शिवलिंग को गोरेश्वर महादेव के नाम से पूजा अर्चना करते है। मंदिर के जीर्णोद्धार के प्रति पुरातत्व विभाग बहुत ही उदासीन है जिसके कारण सालों से इसके जीर्णोद्धार के लिये कोई ठोस कार्य प्रारंभ नहीं हो पाया है। इस मंदिर को शीध्र ही जीर्णोद्धार की आवश्यकता है नहीं तो गर्भगृह भी ढह जायेगा और यह मंदिर पत्थरों का टीला बनकर रह जायेगा। 

इस मंदिर के पास ही स्थानीय ग्रामवासियों ने एक नया मंदिर बनवाया है। इस मंदिर में देवी कंकालीन की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में भगवान नरसिंह की खंडित प्रतिमा भी रखी हुई है। नागो के राजत्व काल में बनी नरसिंह की यह प्रतिम बहुत भव्य है।

हिरण्यकश्यपु का वध करते हुये भगवान नरसिंह के मुख की दिव्य आभा परिलक्षित हो रही है। ये प्रतिमायें पहले बाहर ही रखी हुई थी। बाद में ग्रामीणों ने नया मंदिर बनवाकर प्रतिमाओं को मंदिर  में प्रतिस्ठापित किया। 

इस नये मंदिर में लकड़ी की एक तख्ती दिवार पर टंगी हुई है जिसमें बस्तर दरबार की राजाज्ञा अंकित है। बस्तर दरबार के हुकूम के अनुसार किसी को भी इन प्रतिमाओं के छुने के लिये मनाही है। रियासत कालीन बस्तर में छिंदगांव की प्रतिमाओं के संरक्षण के लिये 1942 ई में  राजदरबार द्वारा राजाज्ञा जारी की गई थी।

सागौन की लकड़ी में अंग्रेजी और हिन्दी दोनों में यह आज्ञा खोदकर लिखी गई है। तब से अब तक राज परिवार  में श्रद्धा के कारण ग्रामीण आज भी उस राजाज्ञा का पालन करते आ रहे है। सालों से प्रतिमाओं की सुरक्षा का दायित्व यहां के ग्रामीण उठाते आ रहे है। 

इस मंदिर में हर साल जात्रा का भी आयोजन होता है। मंदिर परिसर में शीतला माता का मंदिर भी बना हुआ है। 

पुजारी ने बताया कि इस मंदिर में एक शिलालेख भी था जो कि मंदिर के प्रस्तर अवशेषों में दब गया है। मुख्य सड़क से  छिंदगांव तक पहुंचने का मार्ग भी मनोरम दृश्यों से परिपूर्ण है। दुर  फैली पर्वत श्रृंखलाओं और  जगह जगह लगे छिंद के पेड़ मन को आनंदित करने में कोई कमी नहीं रखते हैं.

 हां छिंद पेड़ों की अधिकता भी छिंदगांव की एक विशेषता है। छिंदगांव चित्रकोट रोड में उसरी बेड़ा से पहले  05 किलोमीटर अंदर की तरफ है। पक्की सड़क मंदिर तक गई हुई है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर इसे चित्रकोट के पर्यटन रूट में शामिल करना चाहिये। 

आलेख - ओम सोनी गीदम

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