Posts

Showing posts from March, 2018

चित्रो की प्रयोगशाला - बस्तर के मृतक स्तंभ

Image
चित्रो की प्रयोगशाला - बस्तर के मृतक स्तंभ.....! विविध क्षेत्रों में अपनी अलग पहचान बनाने के कारण बस्तर की आदिम संस्कृति का अपना विशिष्ट स्थान है। कला के क्षेत्र में भी बस्तर की जनजाति संस्कृति अग्रणी है। चित्रकला के क्षेत्र में अद्वितीय चित्रकारी हमें बस्तर में देखने को मिलती है। बस्तर के जनजाति समाज में लोक अवसरों पर चित्रकारी के विभिन्न रूप दिखायी देते है। धर की दिवारे , आंगन या फिर मृतक स्तंभ इन सभी पर बस्तर की चित्रकला के अदभुत दृश्यों की चित्रकारी देखने को मिलती है।  बस्तर के जनजाति समाज में किसी व्यक्ति के मरने पर उसके स्मृति मे स्तंभ गाड़ने की प्रथा रही है। ये स्तंभ बड़े पाषाण खंडो के मेनहीर, लकड़ी के स्तंभ या फिर शिलाओं के रूप में होते है। वर्तमान में दाह संस्कार या समाधि स्थल पर पतली सपाट शिलाओं को स्मृति स्तंभ के रूप में गाड़ा जाता है। इन स्तंभो पर रंग बिरंगी चित्रकारी यहां की सदियों पुरानी चित्रकला को प्रदर्शित करती है। बस्तर के कई स्थलों पर आदिमानव युग की चित्रकारी देखने को मिलती है। काष्ठ स्तंभों पर विभिन्न आकृतियां बनाई जाती थी। अब आधुनिक मृतक स्तंभों पर अव्वल दर्जे की च...

बस्तर की पहचान - तूम्बा

Image
बस्तर में प्रकृति का दिया अनमोल उपहार -  तुम्बा बस्तर में आदिवासियो के जीवन में प्रकृति का बेहद महत्वपूर्ण योगदान है ,यूँ कहै की प्रकृति की दी हुए चीजो के बिना घने जंगलो में जीना बिलकुल भी आसान नहीं है. पहले आदिवासियो के खाना पीेना , रहना , जीवन में उपयोगी वस्तुये सब जंगलो से ही प्राप्त होता रहा है. आज मनुष्य ने बहुत तरक्की कर ली है ज़िससे रोजमर्रा की वस्तुओ के लिये ,वह अब प्रकृति पर ज्यादा निर्भर नहीं है.  अब दैनिक उपयोगी वस्तुये   स्टील , प्लास्टिक से  ही बनने लगी है. बस्तर की आदिम संस्कृति में आदिवासियो के जीवन जीने के तौर तरीको में आज भी बाहरी दुनिया में एक अजीब सा आकर्षण है. इनकी दैनिक उपयोगी वस्तुये आज भी प्रकृति प्रदत्त है. इनके दैनिक उपयोगी वस्तुये भी आज भी शहरी लोगो के लिये कौतुहल का विषय है. यहां आदिवासियो को भगवान ने गजब की शक्ति दी है ज़िसके कारण ये प्रकृति की हर चीज का सही उपयोग कर पाते है. आदिवासियो में दैनिक उपयोग की एक महत्वपूर्ण वस्तु है ज़िसे यहां स्थानीय बोली में  तुम्बा  या बोरका कहा जाता है. बोरका प्रकृति के द्वारा दिया गया सबसे महत्व...

भांड देवल मन्दिर, आरंग

Image
भांड देवल मन्दिर, आरंग आरंग रायपुर जिले के अंतर्गत जैन धर्म के अनुयायियों का प्रमुख स्थल है। आरंग में जैन प्रतिमाआें के अलावा गुप्त कालीन मुद्राये , राजर्षितुल्य कुल वंश , शरभपुरीय तथा कलचुरी शासकों के अनेक अभिलेख प्राप्त हुए है। आरंग में लगभग प्रत्येक मोहल्ले में प्राचीन प्रतिमायें एवं मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े हुये है।   आरंग का भांड देवल मन्दिर छत्तीसगढ़ में जैन धर्म का सबसे प्रमुख एवं सुरक्षित मंदिर है। आरंग रायपुर से महासमुंद रोड में 36 किलोमीटर की दुरी पर स्थित बेहद ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। आरंग महाभारतकालीन राजा मोरध्वज की नगरी मानी गयी है।  आरंग नाम पड़ने के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने अपने सिंह के भोजन के लिये हैहयवंशी राजा मोरध्वज से अपने पुत्र को आरे से काट कर देने की मांग की थी।, महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद कृष्ण अपने भक्त मोरध्वज की परीक्षा लेना चाहते थे। उन्होंने अर्जुन से शर्त लगाई थी कि उनका उससे भी बड़ा कोई भक्त है।  राजा मोरध्वज किसी को भी अपने निवास से खाली हाथ नहीं जाने देते थे। कृष्ण ने ऋषि का वेश एवं अर्...

मयूर की तरह मोहक - मयूरा घुमर

Image
मयूर की तरह मोहक - मयूरा घुमर बस्तर में पग पग पर सुंदर दृश्य दिखायी पड़ते है। बस्तर में घुमना मतलब स्वर्ग में घुमने के समान है। हर तरफ मनमोहक दृश्य दिखायी पड़ते है जो मन को नयी उर्जा एवं आनंद से लबरेज कर देते है। बस्तर दंडकारण्य के पठार पर बसा हुआ है। पठारी धरती होने के कारण मीलो दुर तक जंगल ही जंगल है और पठारी सीमा खत्म होने वाली जगहों पर बेहद ही खुबसुरत जलप्रपात बने हुये है। इन जलप्रपातों के आनंदित कर देने वाले मनमोहनी दृश्य ही बस्तर को स्वर्ग बनाते है। बस्तर चित्रकोट जलप्रपात , तीरथगढ़ जलप्रपात आज भारत ही नहीं बल्कि विश्व के प्रमुख झरनो में से एक है. इसके साथ ही बस्तर में ऐसे और भी सुन्दर और मनोहारी झरने है जो की माओवादी दहशत एवं उचित प्रचार प्रसार ना होने के कारण आज भी गुमनामी में है। चित्रकोट जलप्रपात के पास ही तामड़ा घुमर नाम का बेहद ही खुबसूरत झरना है जिसकी मधुर ध्वनि मारडूम घाटी में गुंजती रहती है। चित्रकोट से बारसूर जाने वाले मार्ग में मारडूम के पास ही पठारी भूमि खत्म होती है। मुख्य सड़क से ही नीचे की हरी भरी वादियां दिखने लगती है। इन खाईयों में ही दो झरने बने हुये है एक तो सामने द...

किरारी गोढ़ी का शिव मंदिर बिलासपुर

Image
किरारी गोढ़ी का शिव मंदिर बिलासपुर......!                 बिलासपुर के समीप किरारी गोढ़ी में प्राचीन मंदिर के पास पहुंचने पर मुझे बड़ी निराशा  हुयी। इसलिये क्योकि वहां मंदिर के नाम पर सिर्फ एक दिवार ही शेष बची थी। बाकि सब पहले ही नष्ट हो गया था। नाले के किनारे बना यह मंदिर पश्चिमाभिमुख है जिसमें मंदिर की सिर्फ पूर्वी दिवार ही शेष है। किन्तु मंदिर की यह दिवार भी बेहद उच्चकोटि की कलात्मक प्रतिमाओं से सुसज्जित है। दिवार पर लगी प्रतिमाओं ने तो दिल जीत लिया। प्रतिमाओं को देखने से मन की निराशा थोड़ी दुर हुयी।              मंदिर गर्भगृह अंतराल एवं मंडप में विभक्त है। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। यह मंदिर लगभग दो फीट उंची जगती पर बना है। मंदिर के अधिष्ठान में पुष्प, लतावल्लरी, गजलक्ष्मी , गजपंक्ति आदि आकृतियां बनी हुयी है। प्रतिमाओ में नटराज , सूर्य, हरिहरहिरण्यगर्भ, दिक्पाल, भारवाहक की प्रतिमायें बेहद ही कलात्मक एवं उच्च कोटि की शिल्पकला को प्रदर्शित करती है। नटराज की प्रतिमा द्वादश भुजी नृत्यमुद्रा में प्र...