शंखिनी

रहस्यमयी शंखिनी ......!

प्राचीन काल में बस्तर तंत्र-मंत्र का गुमनाम एवं रहस्यमयी क्षेत्र था। आज भी बस्तर के स्थान स्थान में रहस्य छुपा हुआ है। यहां की नदियां भी कम रहस्यमयी नहीं है। रहस्यों से भरी एक ऐसी ही नदी शंखिनी है जो दंतेवाड़ा में उदगमित होकर दंतेवाड़ा में ही विलीन हो जाती है। शंखिनी एक बेहद ही छोटी सी नदी है जो बैलाडिला के पहाड़ियों से निकलती है।
इस नदी को बेहद ही प्रदुषित नदी का तमगा मिला हुआ है। प्रदुषित से मतलब नदी के जल में लौह अयस्क की अत्यधिक मात्रा इसे पीने योग्य नहीं बनाती है। इस कारण इस नदी का रंग खुन के समान लाल है।

शंखिनी नदी दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी मंदिर के पीछे डंकिनी नदी में विलीन हो जाती है। आगे गीदम तरफ से आने वाली हारम नदी इस नदी में मिलकर तुमनार के पास मरी नदी का नाम ले लेती है। यह मरी नदी बीजापुर जिले के नेलसनार के पास इंद्रावती में समा जाती है। शंखिनी डंकिनी के संगम पर बस्तर की आराध्या मां दंतेश्वरी का मंदिर है।
शंखिनी नाम में ही बहुत से रहस्य है। शंखिनी और डंकिनी दोनो ही देवी दुर्गा के रौद्ररूप की सहयोगी है। ज्योतिष शास्त्रों में महिलाओं का एक प्रकार शंखिनी भी माना गया है। वास्तुशास्त्रो में शंखिनी एक मादा शंख भी होती है जिसे पूजा में शामिल नहीं किया जाता है और ना ही बजाया जाता है।
ढलते सुरज की लालिमा में रक्तिम सलिला शंखिनी के इस मनमोहक दृश्य की तस्वीर के लिये हम श्री विजय पटनायक जी के हृदय से आभारी है। ...........ओम !

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