तक्षक नाग

बस्तर का उड़ने वाला तक्षक नाग.....!
बैलाडिला के जंगल हैं तक्षक नाग का घर .........!
आज विश्व सर्प दिवस पर यह विशेष जानकारी ........!

बस्तर घने जंगलो के कारण वन्य जीवों से समृद्ध रहा है। अत्यधिक शिकार एवं जंगलो की कटाई से बहुत से वन्य जीव बस्तर से लुप्त हो चुके है। आज भी बस्तर के कुछ क्षेत्रों की वन संपदा आमजनों से अछुती है। दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा के बैलाडीला के जंगल आज भी वन्य जीवों के रहवास के आदर्श स्थल है। जब बात रेंगने वाले जीवों अर्थात सर्प प्रजाति की होती है तो भी उस मामले में भी बस्तर के जंगल अव्वल है। दक्षिण बस्तर में बैलाडिला की पहाड़ियों के जंगल एवं बस्तर के अन्य जंगलो में आज भी पौराणिक सांप तक्षक कभी कभी लम्बी छलांग लगाते हुये दिखायी पड़ता है। स्थानीय स्तर पर इसे उड़ाकू सांप भी कहा जाता है।

महाभारत के बाद राजा परीक्षित के समय इस तक्षक नाग से जुड़ा एक प्रसंग है जिसके अनुसार श्रृंगी ऋषि ने महाराज परीक्षित को श्राप दिया था कि तुम्हारी मृत्यु तक्षक नाग के डसने से होगी। तक्षक नाग के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गयी तब परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक नाग से बदला लेने के लिये सर्प यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में सभी सांप आकर गिरने लगे तब तक्षक नाग डरकर इंद्र की शरण में गया। जैसे ही यज्ञ करने वाले ब्राहमण ने तक्षक नाग की आहुति डाली वैसे ही तक्षक नाग देवलोक से यज्ञ में गिरने लगा। किन्तु आस्तीक ऋषि ने अपने मंत्रो से तक्षक नाग को आकाश में ही रोककर स्थिर कर दिया।
मैने इस सर्प को तीन बार देखा है। यह बड़ी तेजी से एक पेड़ से दुसरे पेड़ तक लंबी छलांग मारता है। जैसे ही पलक झपके वैसे ही यह दुर अगले वृक्ष में दिखाई पड़ता है। सर्प वैज्ञानिकों के अनुसार यह तक्षक नाग अपनी पसलियों को फैला लेता है। शरीर के निचले भागों को अंदर कर उसमें हवा भर लेता है। जिससे यह हल्का हो जाता है। ऐसा करने के बाद वह पेड़ो से लंबी छलांग लगाता है। छलांग लगाते समय यह अपने शरीर को अंग्रेजी के एस अक्षर की तरह मोड़ लेता है। इसकी छलांग बहुत लंबी होती है। मैने इसकी छलांग लगभग 50 से 60 फिट तक देखी है। यह इससे भी कई गुना अधिक लंबी छलांग मारता है।
सरीसृपों के मशहुर वैज्ञानिक डा. एच0के0एस0 गजेन्द्र सर ने बस्तर के सरीसृपों पर बहुत शोध किया है। दक्षिण बस्तर में पहली बार तक्षक नाग की खोज भी उन्होने ही की है। उनके अनुसार इस प्राचीन तक्षक नाग का वैज्ञानिक नाम क्राइसोपेलिया आर्नेटा या ग्लाईडिंग स्नेक भी कहा जाता है। बैलाडिला की पहाडियों का जंगल इस सर्प के रहवास के लिये बेहद उपयुक्त है।
उन्होने अब तक सरीसृपों की 59 प्रजातियों की पहचान की है जो बस्तर में पाये जाते है। जिसमें 5 सांपो की एवं 1 कछुये की प्रजाति जो प्रदेश के लिये नई है। डॉ गजेंद्र ने तक्षक के अलावा इस क्षेत्र में रूखचघा सांप ;डेण्ड्रीलेफिस ट्रिसटिस, पेड़ चिंगराज ;बोइगा गोकुल. पूर्वी मांजरा, पानी चिंगराज ;बोइगा फारेस्टेनी. फार्सटन मांजरा, बेशरम सांप ;ट्राइमेरिसुरस ग्रेमिनियस जिसे हरा गर्तघोणा या ग्रीन पिट वाइपर की खोज की है। उन्होंने ही बैलाडीला पहाड़ के पश्चिमी घाट जो बीजापुर जिले का क्षेत्र है वहां दुर्लभ सितारा कछुए की खोज की है। इस कछुए का जुलॉजिकल नेम जिओचिलोन एलिगेंस है।
आप में से भी बहुत लोगों ने इस छलांग मारने वाले सांप को जरूर देखा होगा, अपना अनुभव जरूर शेयर करें........ओम!
दो फोटो नेट से और बाकी सारी फोटो श्री एज0के0एस0 गजेन्द्र सर ने ली है। वे स्वयं हाथ में इस सर्प को पकड़े हुये है।अधिक से अधिक इस पोस्ट को शेयर करें कापी ना करें।

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