लिंगई माता

लिंगई माता- यहाँ लिंग के रूप में होती है देवी की पूजा.....!

छत्तीसगढ़ के अलोर ग्राम में देवी का एक अनोखा मन्दिर विद्यमान है। इस मन्दिर में देवी की पूजा लिंग के रूप में होती है। या ऐसा कहें कि यह ऐसा शिवलिंग है जो देवी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर में देवी की पूजा लिंग रूप में क्यों होती इसके पीछे मान्यता यह है कि इस लिंग में शिव और शक्ति दोनों समाहित हैं। यहाँ शिव और शक्ति की पूजा सम्मिलित रूप से लिंग स्वरूप में होती है। इसीलिए इस देवी को लिंगेश्वरी माता या लिंगई माता कहा जाता है।


कोंडागॉव जिले मे फरसगॉव से बड़े डोंगर के तरफ नौ किलोमीटर की दुरी पर अलोर ग्राम से लगभग 2 किमी दूर उत्तर पश्चिम में एक पहाड़ी है। इस पहाड़ी को लिंगई गट्टा कहा जाता है। इस छोटी पहाड़ी के ऊपर विस्तृत फैला हुआ चट्टान के उपर एक विशाल पत्थर है। इस पत्थर की संरचना भीतर से कटोरानुमा है। इस मंदिर के दक्षिण दिशा में एक सुरंग है जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। इस सुरंग का द्वार इतना छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है। गुफा के अंदर 25 से 30 आदमी बैठ सकते हैं। गुफा के अंदर चट्टान के बीचों-बीच निकला शिवलिंग है जिसकी ऊंचाई लगभग दो फुट है। कहा जाता है कि इसकी ऊंचाई पहले बहुत कम थी जो समयानुसार बढ़ रही है!! परम्परानुसार इस प्राकृतिक मंदिर में प्रतिदिन पूजा नहीं होती है। इस मन्दिर का द्वार वर्ष में केवल एक दिन के लिए ही खुलता है, और इसी दिन यहाँ विशाल मेला लगता है। 

संतान प्राप्ति की मन्नत लिये यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमीं तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है, तथा दिनभर श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन तथा पूजा अर्चना की जाती है।

इस देवी धाम से जुड़ी दो विशेष मान्यताएं प्रचलित हैं। पहली मान्यता संतान प्राप्ति के बारे में है। यहाँ आने वाले अधिकांश श्रद्धालु संतान प्राप्ति की मन्नत मांगने आते है। यहां मनौती मांगने का तरीका अनूठा है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति को खीरा चढ़ाना होता है । प्रसाद के रूप में चढ़े खीरे को पुजारी, पूजा के बाद दंपति को वापस लौटा देता है। दम्पति को शिवलिंग के सामने ही इस ककड़ी को अपने नाखून से चीरा लगाकर दो टुकड़ों में तोड़कर इस प्रसाद को दोनों को ग्रहण करना होता है। चढ़ाए हुए खीरे को नाखून से फ़ाडकर शिवलिंग के समक्ष ही (क़डवा भाग सहित) खाकर गुफा से बाहर निकलना होता है।

यहाँ प्रचलित दूसरी मान्यता भविष्य के अनुमान को लेकर है। एक दिन की पूजा के बाद जब मंदिर बंद कर दिया जाता है तो मंदिर के बाहर सतह पर रेत बिछा दी जाती है। इसके अगले साल इस रेत पर जो चन्ह मिलते हैं, उससे पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं। उदाहरण स्वरूप दृ यदि कमल का निशान हो तो धन संपदा में बढ़ोत्तरी होती है, हाथी के पांव के निशान हो तो उन्नति, घोड़ों के खुर के निशान हों तो युद्ध, बाघ के पैर के निशान हो तो आतंक तथा मुर्गियों के पैर के निशान होने पर अकाल होने का संकेत माना जाता है।

चूँकि प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमीं तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है, यहां दर्शन के लिये एक बार जरूर जाये---!

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